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भयानक रस के उदाहरण | Bhayanak Ras ke Udaharan

Bhayanak Ras ke Udaharan

ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहने वारी  
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती है
कंद मूल भोग करैं कंद मूल भोग करैं 
तीन बेर खाती ते वे तीन बेर खाती है। ।

उससान डगर पर था सन्नाटा चहुँ ओर,
गहन अँधेरी रात घिरी थी. अभी दूर थी भोर।
सहसा सुनी दहाड़ पथिक ने सिंह-गर्जना भारी,
होश उड़े. सिर गया घूम हुई शिथिल इंद्रियाँ सारी। 

मैंहरात, झैहरात दावानल आयौ ।
घेरि चहुँ ओर, करि सोर, अंधर बन, धरनि-अकास चहुँ पास छायौ।
बरत बन-बाँस, थरहरत कुस-काँरु, जरि उड़त है माँस अति प्रबल धायै ।
झपरि-झपटल लपट, पटाके फूल, फूटत, द्रुम फटि चटकि लट लटकि गवायै।

भयानक रस के उदाहरण | Bhayanak Ras ke Udaharan

पुनि किलकिला समुद महं आए। गा धीरज देखत डर खाए ।
था किलकिल अस उठै हिलोरा जनु अकास टूटे चहुँ ओरा ।।

हा-हाकार हुआ क्रन्दनमय,
कठिन कुलिश होते थे चूर
हुए दिगंत वधिर भीषण रव,
बार-बार होता था क्रूर।।                            

उधर गजरती सिंधु लहरियाँ
कुटिल काल के जालों सी।
चली आ रहीं फेन उगलती
फन फैलाये ब्यालो सी॥

भयानक रस के उदाहरण | Bhayanak Ras ke Udaharan

भूषन सिथिल अंग, भूषन सिथिल अंग
विजन डुलाती ते वै, विजन डुलाती हैं।
‘भूषन’ भनत सिवराज, वीर तेरे त्रास,
नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती हैं।

एक ओर अजगरहीं लखि एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही परयो मूरछा खाय।।

सवन के ऊपर ही ठाड़ो रहिबे के जोग,
ताहि खड़ो कियो छः हजारिन के नियरे।
जानि गैरि मिसिल गुसीले गुसा धारि मनु,
कीन्हों न सलाम न वचन बोले सियरे ।।
भूषण भनत महावीर बलकन लाग्यो,
सारी पातसाही के उड़ाय गए जियरे ।
तपक तें लाल मुख सिवा को निरखि भए,
स्याह मुख नौरंग सियाह मुख पियरे ।

“डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दाँतों से,
छीन-गरीबों के मुँह का है, कौर दुरंगी घातों से ।
हरियाली में आग लगी है, नदी-नदी है खौल उठी
भीग सपूतों के लहू से अब धरती है बोल उठी
इस झूठे सौदागर का यह काला चोर-बाज़ार उठे,
परदेशी का राज न हो बस यही एक हुंकार उठे।।

भयानक रस के उदाहरण | Bhayanak Ras ke Udaharan

एक ओर अजगरहि लखी, एक ओर मृगराय.
बिकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाए.

उधर गरजती सिंधु लहरियाँ
कुटिल काल के जालों सी।
चली आ रहीं फेन उगलती
फन फैलाये व्यालों सी।

आज बचपन का कोमल गात
जरा का पीला पात !
चार दिन सुखद चाँदनी रात
और फिर अन्धकार , अज्ञात !

अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार

मां ने एक बार मुझसे कहा था
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं। ।

हनुमान की पूंछ में लगन न सकी आग
लंका से सीगरी जल गई गए निशाचर भाग। ।

गज की घटा न गज घटनी श्नेह साजे  
भूषण भनत आयो से शिवराज को।

उधर गरजती सिंधु लहरियां कुटिल काल के जालों सी
चली आ रही फैन उगलती फन फैलाए व्यालों सी।

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