दृष्टान्त अलंकार (Drashtant Alankar)
दृष्टान्त अलंकार (Drashtant Alankar) – जब पहले एक बात कहकर फिर उससे मिलती जुलती दूसरी बात पहली बात के उदाहरण के रूप में कही जय इस प्रकार जब दो वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब-भाव हो तब दृष्टान्त अलंकार होता है।
दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण –
✦ एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकती हैं, किसी और पर प्रेम नारियाँ पति का क्या सह सकती हैं? स्पष्टीकरण - यहाँ एक म्यान में दो तलवार रखने और एक विल में दो नारियों का प्यार बसाने में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है। पूर्वार्द्ध का उपमेय वाक्य से सर्वथा स्वतन्त्र है, फिर भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव से दोनों वाक्य परस्पर सम्बद्ध हैं। एक के बिना दूसरा का अर्थ स्पष्ट नहीं होता।
✦ पापी मनुज भी आज मुख से राम-नाम निकालते। देखो भयंकर भेड़िये भी आज आँसू ढालते। स्पष्टीकरण - यहाँ पापी मनुष्य का प्रतिबिम्ब भेड़िये में तथा राम-नाम का प्रतिबिम्ब आँसू से पड़ रहा
✦ रहिमन अंसुवा नयन ढरि जिय दुख प्रकट करैई। जाहि निकारो गेह ते,कस न भेद कहि देई।। स्पष्टीकरण - यहां पर प्रथम वाक्य में एक बात कही गई है और दूसरे वाक्य में दूसरी बात। दोनों के धर्म भिन्न है इसमें समता सूचित करने के लिए ‘वाचक’ शब्द अर्थात ‘सम’,‘समान’आदि का प्रयोग भी नहीं हुआ है। परंतु दोनों वाक्यों में बिंब-प्रतिबिंब स्थिति है। दूसरा वाक्य पहले वाक्य को सपोर्ट करने वाले उदाहरण की भांति है,अतः यहां दृष्टांत अलंकार है।
दृष्टान्त अलंकार के अन्य उदाहरण –
✦ सठ सुधारहीं सत-संगति पाई। पारस परसि कु-धातु सुहाई।।
✦ कुलहिं प्रकासै एक सुत, नहिं अनेक सुत निंद। चंद एक सब तम हरै, नहिं ठडगन के वृन्द।।
✦ परी प्रेम नंदलाल के, हमहिं न भावत जोग। मधुप राजपद पाय के, भीख न मांगत लोग।।
✦ सिव औरंगहि जिति सकै, और न राजा-राव। हत्थि-मत्थ पर सिंह बिनु, आन न घालै घाव।।
✦ करत-करत अभ्यास के, जङमति होत सुजान। रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।।