Karun Ras ( करुण रस ) : Karun Ras Ki Paribhasha
करुण रस : परिभाषा, भेद और उदाहरण | Karun Ras in Hindi – इस आर्टिकल में हम करुण रस ( Karun Ras), करुण रस किसे कहते कहते हैं, करुण रस की परिभाषा, करुण रस के भेद/प्रकार और उनके प्रकारों को उदाहरण के माध्यम से पढ़ेंगे। इस टॉपिक से सभी परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते है। हम यहां पर करुण रस ( Karun Ras) के सभी भेदों/प्रकार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी लेके आए है। Hindi में करुण रस ( Karun Ras) से संबंधित बहुत सारे प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं और राज्य एवं केंद्र स्तरीय बोर्ड की सभी परीक्षाओं में यहां से questions पूछे जाते है। Karun ras in hindi grammar रस इन हिंदी के बारे में उदाहरणों सहित इस पोस्ट में सम्पूर्ण जानकारी दी गई है। तो चलिए शुरू करते है –
करुण रस | Karun Ras
करुण रस का स्थाई भाव शोक होता है। यह मानवीय सहानुभूति का प्रसार सर्वाधिक होता है। अतः जब स्थाई भाव शोक विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर आस्वाद रूप धारण करता है तब इसकी परिणीति करुण रस कहलाती है। करुण रस के आलंबन दुखी प्राणी, दुखपूर्ण परिस्थितियां, संकट – शोक दीनता, वध बंधन, उपधात आदि होते है।
करुण रस की परिभाषा | Karun Ras Ki Paribhasha
करुण रस:- करुण रस का विषय शौक होता है। जब किसी प्रिय या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए तब करुण रस जागृत होता है।
अथवा
जिस भाव में स्थायी भाव शोक की अभिव्यक्ति करता हो वहां पर करुण रस होता है ।
रस की परिभाषा – जब किसी के दूर चले जाने, कोई हानि, वस्तु की हानि, बिछड़ना किसी से, प्रेम मे बिछड़ना, किसी का आजीवन दूर चले जाने पर मन मे जो वेदना व हृदय मे जो वेदना या दुःख का भाव उत्पन्न होता है। उसे ही करुण रस कहा जाता है। इसका स्थायी भव शोक है।
धनंजय के अनुसार करुण रस–
धनंजय के अनुसार करुण रस–
‘इष्टनाशादनिष्टाप्तौ शोकात्मा करुणोऽनुतम्।’
विश्वनाथ के अनुसार करुण रस –
‘इष्टनाशादनिष्टाप्ते: करुणाख्यो रसो भवेत।’
हिन्दी के अधिकांश काव्य आचार्यों ने इन्हीं को स्वीकार करते हुए करुण रस का लक्षण रूढ़िगत रूप में प्रस्तुत किया है।
देव के अनुसार करुण रस –
‘विनठे ईठ अनीठ सुनि, मन में उपजत सोग।
आसा छूटे चार विधि, करुण बखानत लोग।।’
चिन्तामणि के अनुसार करुण रस –
‘इष्टनाश कि अनिष्ट की, आगम ते जो होइ।
दु:ख सोक थाई जहाँ, भाव करुन सोइ।।’
मैथिलीशरण गुप्त का करुण रस –
प्रिय मृत्यु का अप्रिय महा संवाद पाकर विष भरा ।
चित्रस्थ – सी निर्जीव मानो रह गई हत उत्तरा ।।
संज्ञा – रहित तत्काल ही फिर वह धरा पर गिर पड़ी ।
उस काल मूर्च्छा भी अहो ! हिलकर हुई उसकी बड़ी ।।
सुमित्रानंदन पंत का करुण रस –
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षणभर एक चमक है लाती
तुरंत शून्य में गड वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती ।
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला ‘ का करुण रस –
धिक जीवन जो पाता ही आया है विरोध ।
धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध ।।
तुलसीदास का करुण रस –
जथा पंख बिनु खग अति दीना ।
मानी बिनु फनि कारिबर कर हिना।।
अस मय जीवन बंधु बिनु तोहि।
जौं जड़ दैव जियावै मोही ।।
करुण रस के अवयव –
स्थाई भाव | शोक |
आलंबन (विभाव) | प्रिय व्यक्ति जो मार गया हो, या दीन दशा में हों । विनष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु, |
उद्दीपन (विभाव) | आलंबन का दाहकर्म, पृथ्वी पर लोटना, छाती पिटना, इष्ट के गुण तथा उससे संबंधित वस्तुएं एवं इस्ट के चित्र का वर्णन |
अनुभाव | भूमि पर गिरना, नि:श्वास, छाती पीटना,रूदन, प्रलाप, मूर्छा, दैवनिंदा, कम्प आदि। |
संचारी भाव | चिन्ता,निर्वेद, मोह, अपस्मार, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, विषाद, जड़ता, दैन्य, उन्माद आदि। |
करुण रस के उदाहरण | Karun Ras Ke Udaharan
- देखि सुदामा की दीन दशा
करुण करके करुणा निधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं,
नैनन के जल सों पग धोये॥ - अभी तो मुकुट बंधा था माथ ।
हुए कल ही हल्दी के हाथ ।।
खुले भी न थे लाज के बोल ।
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल ।।
हाय रुक गया यहीं संसार ।
बिना सिंदूर – अंगार ।। - जथा पंख बिनु खग अति दीना. मनिबिनु फ़न करिबर कर हीना ।
अस ममजिवनबन्धु बिन तोही. जौ जड़ दैवजियावै मोही॥ - धिक जीवन जो पाता ही आया है विरोध ।
धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध ।। - जिस बच्ची ने कुछ नही पाया था।
क्रुर हाथों ने अभी उसे जलाया था ॥ - राम-राम कहि राम कहि, राम-राम कहि राम।
तन परिहरि रघुपति विरह, राउ गयउ सुरधाम।।