रौद्र रस के उदाहरण | Raodra Ras Ke Udaharan

रौद्र रस:- रौद्र का विषय क्रोध है। विरोधी पक्ष की ओर से व्यक्ति,समाज, धर्म अथवा राष्ट्रीय की निंदा या अपमान करने पर मन में उत्पन्न होने वाले क्रोध से रौद्र-रस की उत्पत्ति होती है।

रौद्र रस के उदाहरण | Raodra Ras Ke Udaharan

उस काल मरे क्रोध के तन काँपने उसका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।

श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर करतल-युगल मलने लगे॥

अरे ओ! दुःशासन निर्लज्ज, देख तू नारी का भी क्रोध।
किसे कहते उसका अपमान, करा दूंगी मैं उसका बोध॥

रौद्र रस के उदाहरण | Raodra Ras Ke Udaharan

भारत का भूगोल तड़पता, तड़प रहा इतिहास है।
तिनका – तिनका तड़प रहा है, तड़प रही हर सांस है।
सिसक रही है सरहद सारी, मां के छाले कहते हैं।
ढूंढ रहा हूं किन गलियों में, अर्जुन के सूत रहते हैं।।

जो राउर अनुशासन पाऊँ।
कन्दुक इव ब्रह्माण्ड उठाऊँ।।
काँचे घट जिमि डारिऊँ फोरी।
सकौं मेरु मूले इव तोरी।।

विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीत।।

रौद्र रस के उदाहरण | Raodra Ras Ke Udaharan

क्या हुई बावली
अर्धरात्रि को चीखी
कोकिल बोलो तो
किस दावानल की
ज्वालाएं है दिखीं?
कोकिल बोलो तो।।

अतिरस बोले वचन कठोर
बेगि देखाउ मूढ़ नत आजू
उलटउँ महि जहँ जग तवराजू॥

सुनहूँ राम जेहि शिवधनु तोरा सहसबाहु सम सो रिपु मोरा
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा न त मारे जइहें सब राजा॥

रौद्र रस के उदाहरण | Raodra Ras Ke Udaharan

खून उसका उबल रहा था।
मनुष्य से वह दैत्य में बदल रहा था॥

उस काल मरे क्रोध के तन काँपने उसका लगा
मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा॥

जो राउर अनुशासन पाऊँ।
कन्दुक इव ब्रह्माण्ड उठाऊँ॥
काँचे घट जिमि डारिऊँ फोरी।
सकौं मेरु मूले इव तोरी॥

रौद्र रस के उदाहरण | Raodra Ras Ke Udaharan

उबल उठा शोणित अंगो का , पुतली में उत्तरी लाली।
काली बनी स्वय वह बाला , अलक अलक विषधर काली॥

सुनत लखन के बचन कठोर। परसु सुधरि धरेउ कर घोरा।।
अब जनि देर दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालक बध जोगू।।

समाचार कहि जनक सुनाए। जेहि कारन महीप सब आए।
सुनत बचन फिरि अनत निहारे देखे चाप खंड महि डारे।
असि रिस बोले बचन कठोर। कहु जड़ जनक धनुष के तोरा।।

रौद्र रस के उदाहरण | Raodra Ras Ke Udaharan

अतिरस बोले बचन कठोर।
बेगि देखाउ मूढ़ नत आजू।
उलटउँ महि जहाँ लग तवराजू।।

खून उसका उबल रहा था।
मनुष्य से वह दैत्य में बदल रहा था।।

फिर दुष्ट दुःशासन समर में शीघ्र सम्मुख आ गया।
अभिमन्यु उसको देखते ही क्रोध से जलने लगा।
निश्वास बारम्बार उसका उष्णतर चलने लगा।

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