Ras in Hindi : रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण | रस के प्रकार – हिन्दी व्याकरण
रस की परिभाषा
रस का सामान्यत: अर्थ-आनंद।
रस की परिभाषा :- काव्य (कविता,उपन्यास,नाटक,कथा आदि) के पढ़ने या सुनने अथवा उसका अभिनय देखने से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं।
रस को ‘काव्य की आत्मा’ या ‘प्राण’ माना जाता है।
रस का संबंध ‘स’ धातु से माना जाता है जिसका अर्थ जो बहता है, अर्थात जो भाव रूप में हृदय में बहता है उसी को रस कहते हैं।
रामचन्द्र शुक्ल ने रस को साहित्य/काव्य की आत्मा कहां है,जिस प्रकार शरीर में प्राण न हो तो शरीर का कोई अर्थ नहीं उसी प्रकार अगर काव्य में रस न हो तो काव्य का कोई अर्थ नहीं
भरतमुनि द्वारा रस की परिभाषा-
भरतमुनि को रस शास्त्र/रस संप्रदाय का प्रवर्तक माना गया है,क्योंकि इनके द्वारा रचित “नाटकशास्त्र” में रस का अध्ययन है।
भरतमुनि के द्वारा सबसे पहले ‘नाटकशास्त्र’ में काव्य रस के बारे में उल्लेख किया था।
विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्ति:।
अर्थात विभाव,अनुभाव,संचारी भाव के संयोक से रस की निष्पत्ति होती हैं।
रीतिकाल के प्रमुख कवि देव ने देश की परिभाषा इन शब्दों में की है:
जो विभाव अनुभाव अरू, विमचारिणु करि होई।
थिति की पूरन वासना,सुकवि कहत रस होई॥
रस के भेद | Ras ke bhed
रस के भेद- रस के 9 भेद हैं परंतु कुछ आयार्यो ने भक्ति और वत्सल को भी अलग से रस मानकर एकादश रस की कल्पना की हैं। जो निन्न प्रकार हैं-
रस के 9 भेद हैं परंतु कुछ आयार्यो ने भक्ति और वत्सल को भी अलग से रस मानकर एकादश रस की कल्पना की हैं। जो निन्न प्रकार हैं-
1. श्रृंगार रस
2. हास्य रस
3. करुण रस
4. वीर रस
5. रौद्र रस
6. भयानक रस
7. अद्भुत रस
8. शांत रस
9. वीभत्स रस
10.वत्सल रस
11.भक्ति रस
श्रृंगार रस की परिभाषा
1. श्रृंगार रस:- श्रृंगार रस का विषय प्रेम होता है। पुरुष के प्रति स्त्री के हृदय में या स्त्री के प्रति पुरुष के हृदय में जो प्रेम जागृत होता है उसी की व्यंजना श्रृंगार-काव्य में होती है,जैसे- सीता और राम का प्रेम या गोपियों और कृष्ण का प्रेम
श्रंगार दो प्रकार का होता है –
(1) संयोग – जब प्रेमी और प्रेम पात्र जुदा नहीं हो
(2)वियोग या विप्रलम्भ – जब प्रेम पात्र एक-दूसरे से जुदा हों। इसमें विरह-व्याकुलता की व्यंजना होती हैं।
श्रृंगार रस के उदाहरण
देखन मिस मृग-बिहँग-तरू, फिरति बहोरि-बहोरि।
निरख-निरखि रघुबीर-छबि, बाढ़ी प्रीति न थोरि॥
हास्य रस की परिभाषा
2. हास्य रस:- इस रस का विषय हास या (हंसी) होती है। किसी भी विचित्र आकार या वेश या चेष्टा वाले लोगों को देखकर एवं उनकी विचित्र चेष्टाएँ आदि को देख सुनकर हंसी जागृत होती हैं।
हास्य रस के उदाहरण
बुरे समय को देखकर कर गंजे तू क्यों रोय।
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय॥
करुण रस की परिभाषा
3. करुण रस:- करुण रस का विषय शौक होता है। जब किसी प्रिय या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए तब करुण रस जागृत होता है।
करुण रस के उदाहरण
देखि सुदामा की दीन दशा
करुण करके करुणा निधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं,
नैनन के जल सों पग धोये॥
वीर रस की परिभाषा
4. वीर रस:- वीर रस का विषय उत्साह या जोश होता है। युद्ध करने के लिए अथवा नीति धर्म आदि की दुर्दशा को मिटाने जैसे कठिन कार्यों के लिए मन में उत्पन्न होने वाले उत्साह से वीर रस जागृत होता है।
वीर रस के उदाहरण
“तनिक कर भाला यूं बोल उठा,
राणा!मुझको विश्राम न दे।
मुझको वैरी से हृदय-क्षोभ
तू तनिक मुझे आराम न दे॥
रौद्र रस की परिभाषा
5. रौद्र रस:- रौद्र का विषय क्रोध है। विरोधी पक्ष की ओर से व्यक्ति,समाज, धर्म अथवा राष्ट्रीय की निंदा या अपमान करने पर मन में उत्पन्न होने वाले क्रोध से रौद्र-रस की उत्पत्ति होती है।
रौद्र रस के उदाहरण
श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर करतल-युगल मलने लगे॥
भयानक रस की परिभाषा
6. भयानक रस:-भयानक रस का विषय भय है। किसी बात को सुनने, किसी वस्तु या व्यक्ति को देखने अथवा उसकी कल्पना करने से मन में भय छा जाए,तो उस वर्णन में भयानक रस विद्यमान रहता है।
भयानक रस के उदाहरण
एक ओर अजगरहीं लखि एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही परयो मूरछा खाय।।
अद्भुत रस की परिभाषा
7. अद्भुत रस:- अद्भुत रस का विषय आश्चर्य या विस्मय होता है। किसी असाधारण अलौकिक या आश्चर्यजनक वस्तु ,दृश्य या घटना देखने, सुनने से मन का चकित होकर विस्मय में आ जाता, अद्भुत रस की उत्पत्ति करता है।
अद्भुत रस के उदाहरण
अखिल भुवन चर अचर जग हरिमुख में लखि मातू।
चकित भायी, गदगद वचन, विकसित दृग, पुलकातु॥
शांत रस की परिभाषा
8. शांत रस:- शांत रस का विषय निर्वेद अथवा वैराग्य होता है। संसार की दुखमयता,अनित्यता आदि देखकर कर सांसारिक की वस्तुओं से वैराग्य जागृत होता है। शांत रस की कविता में ऐसे वैराग्य की व्यंजना होते हैं। भक्ति की रचना भी प्राय: शांत रस में ही सम्मिलित की जाती हैं।
शांत रस के उदाहरण
समता लहि सीतल भया, मिटी मोह की ताप।
निसि-वासर सुख निधि लह्मा,अंतर प्रगट्या आंप॥
वीभत्स रस की परिभाषा
9. वीभत्स रस:- वीभत्स रस का विषय जुगुप्सा या ग्लानि होता है। घृणा उत्पन्न करने वाली वस्तुओं को देखकर सुनकर मन में उत्पन्न होने वाले भाव वीभत्स रस को उत्पन्न करता है।
वीभत्स रस के उदाहरण
रिपु-आँतन की कुंकली करि जोगिनी चबात।
पीबहि में पागी मनो जुवति जलेबी खात॥
वात्सल्य रस की परिभाषा
10.वात्सल्य रस:- वत्सल रस का विषय पुत्र,पुत्री,अनुज,शिष्य आदि के प्रति प्रेम होता है। छोटे बालक – बालिकाओं की मधुर चेष्टा उनकी बोली के प्रति माता-पिता की ममता एवं से वत्सल रस की उत्पत्ति होती है।
वात्सल्य रस के उदाहरण
बाल दशा मुख निरखि यशोदा
पुनि-पुनि नंद बलावती।
अँचरा तक लैं ढाँकि
सूर के प्रभु को दूध पियावति॥
11. भक्ति रस की परिभाषा
11.भक्ति रस:- भक्ति रस का विषय आराध्य प्रभु के प्रति अनुरक्त का भाव होता है। इनमें आलंबन इष्टदेव या इष्ट देवी होती हैं।
भक्ति रस के उदाहरण
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मारे मुकुट मेरो पति सोई॥
रस के अंग (Ras ke Ang)
रस के चार अंग या अवयव होते है –
1. स्थायी भाव – ‘रति’
2. संचारी भाव – लज्जा,हर्ष स्मृति,आवेग इत्यादि
3. विभाव- नायक और नायिका
4. अनुभव – मुस्कान,आलिंगन,स्पर्श इत्यादि
(1) स्थायी भाव- स्थायी भाव का अर्थ प्रधान अथवा प्रमुख भाव से है।
प्रत्येक रस में एक प्रधान मनोविकार होता है जिसके जागृत होकर परिपक्व होने से रस का अनुभव होता है । यह रसानुभव-काल में प्रारंभ से अंत तक बना रहता है। इसको स्थायी भाव कहते हैं।
यह भाव मन में सदा बना रहता है अथवा विद्यमान रहता है हर एक प्रकार के रस में एक स्थायी भाव विद्यमान रहता है।
स्थायी भाव मनुष्य के हृदय के अंदर जीवन पर्यंत सुसुप्तावस्था में विद्यमान रहते हैं और एक समय में एक ही स्थायी भाव सक्रिय अवस्था में होता है जिससे हम अपनी भावनाओं को प्रकट करने में समर्थ होते हैं।
रसों के स्थायी भावों के नाम-
1. रति
2. हास
3. शोक
4. उत्साह
5. क्रोध
6. भय
7. जुगुप्सा
8. विस्मय
9. निर्वेद (निर्वेद) या शम (शान्ति)
भरतमुनि के अनुसार स्थायी भाव की संख्या आठ है तथा इन्हीं आठ स्थायी भाव के आधार पर उन्होंने रसों की संख्या आठ कही है।
नाटक में एक स्थायी भाव निर्देश शांत रस पाया जाता है तो नाटक में नौ पाए जाते हैं।
आधुनिक समय के कवि ने स्थाई भाव की संख्या ग्यारह मनी है तथा इसी के आधार पर रसों की संख्या भी ग्यारह हो जाता हैं।
क्रमांक | रस का नाम | स्थायी भाव |
1. | श्रृंगार रस | रती (प्रेम) |
2. | हास्य रस | हास (हँसी) |
3. | करुण रस | शोक |
4. | वीर रस | उत्साह |
5. | रौद्र रस | क्रोध |
6. | भयानक रस | भय |
7. | बीभत्स रस | जुगुप्सा (घृणा) |
8. | अद्भुत रस | विस्मय |
9. | शांत रस | शम (शांति) या निर्वेद (वैराग्य) |
10. | वत्सल रस | स्नेह या वात्सल्य |
11. | भक्ति रस | देवी,भगवद् विषयक रति,प्रभु, इष्टदेव |
(2) विभाव- वे सब स्थायी भाव को जाग्रत और उद्दीप्त होने के कारणों को विभाव कहते हैं।
विभव का शाब्दिक अर्थ – भाव को विशेष रूप से प्रवर्तित करने वाला।
विभाव के दो प्रकार होते हैं :
(i) उद्दीपन
(ii) आलम्बन
(i) उद्दीपन:- जो जाग्रत हुए मनोविकार को उत्तेजित करे अर्थात् बढ़ावे उसे उद्दीपन विभाव कहलाता है।
सरल शब्दों में – जो भावों को उद्दीप्त करने में सहायक होते है उन्हें उद्दीपन विभाव कहते हैं।
जैसे- वीर-रस में मारू बाजा,चरणों का प्रोत्साहन, चाँदनी,कोकिल,उद्यान आदि।
(ii) आलम्बन:- जिकास आलाम्बन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते हैं, आलम्बन विभाव कहलाता है।
जैसे- प्रेम-पात्र स्त्री या पुरुष जिसे देखकर प्रेम जाग्रत हो।
आलम्बन विभाग के दो पक्ष होते है – आश्रयालंबन व विषयालांबन
आश्रयालंबन – जिसके मन में भाव जगे वह आश्रयालांबन कहलाता है।
विषयालांबन – जिसके प्रति या जिसके कारण मन में भाव जग वह विषयालांबन कहलाता है।
जैसे – यदि श्याम के मन में राधा के प्रति रति का भाव जगता है तो श्याम आश्रय होंगे और राधा विषय।
आलम्बन विभाव:-
क्रमांक रस का नाम आलम्बन विभाव
1. श्रृंगार रस प्रेम पत्र स्त्री या पुरुष
अर्थात नायक या नायिका
2. हास्य रस जिसको देख-सुन कर हँसी आवे,जैसे विदूषक।
3. वीर रस जिस व्यक्ति को देखकर लड़के का उत्साह हो या दान देने या सहायता करने का उत्साह
हो जैसे शत्रु या दीन या याचक
4. करुण रस प्रिय वस्तु जो नाश हो गई हो।
प्रिय व्यक्ति जो मर गया हो या दीन दशा में हो।
5. रौद्र रस जिसको देखकर क्रोध आवे,जैसे शत्रु या अपकारक।
6. भयानक रस जिसको देखकर भय लगे।
7. अद्भुत रस आश्चर्य कारक या अलौकिक व्यक्ति या वस्तु या दृश्य या घटना।
8. बीभत्स रस जिसको देखकर जुगुप्सा हो, जैसे- श्मशान,मांस, रुधिर,फूहड़ आदि।
9. शान्त रस वैराग्य या शांति जनक वस्तु या परिस्थिति आत्मा – ज्ञान।
10. वत्सल रस अनु जिससे संतान।
भक्ति रस देवी प्रभु इष्टदेव भगवान
उद्दीपन विभाव:-
क्रमांक रस का नाम उद्दीपन विभाव
1. श्रंगार रस सुंदर प्राकृतिक दृश्य, वसंत, संगीत, प्रिय की चेष्टाएँ।
2. हास्य रस आलंबन की विचित्र चेष्टाएँ, विचित्र वेश या कथन या कोई अन्य विचित्रता आदि।
3. वीर रस शत्रु की ललकार मारूबाजा,चरणों के गीत, दिन का दुख या दरिद्रता याचक कृत
प्रशंसा आदि
4. रौद्र रस अपकारक या शत्रु की चेष्टाएं,अनुसूचित कथन आदि।
5. करुण रस आलंबन की दीन दशा,दह-क्रिया आलंबन के गुणों का स्मरण,आदि
6. भयानक रस आलंबन की भयंकरता,उसकी भयंकरता को बढ़ाने वाली वस्तुएं आदि।
7. बीभत्स रस कीड़े दुर्गंध बिलाना,मक्खियों का भिन भिनना आदि।
8. अद्भुत रस आलंबन के अद्भुत गुण कर्म आदि।
9. शांत रस पवित्र आश्रम, सत्संगति तीर्थ यात्रा आदि।
10. वत्सल आलंबन की चेष्टा बाल क्रीड़ाएँ आदि।
11. भक्ति रस प्रभु की महानता।
(3) संचारी भाव:- मन में विचरण करने वाले भाव को संचारी भाव कहते हैं।
प्रधान मनोविकार के साथ छोटी-छोटी कई और मनोविकार उत्पन्न होते हैं जो प्रधान मनोविकार के परिपाक में, उनकी अनुभूति को तीव्र बनाने में सहायक होते हैं और रस की अनुभूति में सहायता करते हैं।
इनकी संख्या बहुत बड़ी है पर साहित्य के शास्त्र में 33 प्रमुख भागों को चुन लिया गया है अतः संचारी भाव की संख्या 33 मानी जाती है –
संचारी भाव की कुल संख्या 33 मानी गई है –
संचारी भाव की कुल संख्या 33 मानी गई है जो निम्न प्रकार है –
1. हर्ष
2. गर्व
3. ग्लानि
4. मोह
5. मरण
6. श्रम
7. शंका
8. स्मृति
9. निंद्रा
10. धृति
11. आवेग
12. दीनता
13. व्याधि
14. उन्माद
15. अपस्मार
16. मद
17. जड़ता
18. श्रम
19. बिबोध
20. मति
21. निर्वेद
22. जड़ता
23. चपलता
24. शंका
25. चिंता
26. लज्जा
27. विषाद
28. असूया
29. अमर्ष
30. उग्रता
31. उत्सुकता
32. आलस्य
33. स्वप्न
(4) अनुभव :- मन के भाव को व्यक्त करने के लिए शरीर के विकार उत्पन्न होता है उसे अनुभव कहते हैं।
अथवा
मनोविकार जागृत होने पर बाह्म चेष्टाओं द्वारा प्रकट होता है अतः ऐसी शारीरिक चिताओं को अनुभव कहते हैं।
इसकी संख्या आठ होते हैं।
जैसे -मुस्कुराना,चुटकुला सुनकर हंसना, मुख का खिलना,हॉट चबाना,आवाज का काँपना आदि।
अनुभव के दो भेद होते हैं –
(i) कायिक
(ii) सात्विक
(i) कायिक :- कायिक अनुभव देह संबंधित होते हैं और इन क्रियाओं पर नियंत्रण संभव हो पाता है।जैसे क्रोध स्थायी भाव के जाग्रत होने पर हाथ- पैर चलने की क्रिया पर चाहने पर नियंत्रण संभव होता है।
(ii) सात्विक:-अनुभव के दूसरे भेद को सात्विक भाव कहते हैं।
इनकी संख्या आठ है।
इनकी संख्या आठ है।
1. स्तंभ
2. स्वेद
3. रोमांच
4. स्वर भंग
5. कंप
6. वैवर्णता
7. अश्रु
8. प्रलय
दोस्तो हमने इस आर्टिकल में Ras in Hindi के साथ – साथ Ras kise kahate hain, Ras ke bhed के बारे में पढ़ा। हमे उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। आपको यहां Hindi Grammar के सभी टॉपिक उपलब्ध करवाए गए। जिनको पढ़कर आप हिंदी में अच्छी पकड़ बना सकते है।