सन्देह अलंकार किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं इसके उदाहरण

जब सादृश्य के कारण एक वस्तु में अनेक अन्य वस्तु के होने की सम्भावना दिखायी ठे और निश्चय न हो पाये,तब संदेह अलंकार होता हैं।

जब किसी पद में समानता के कारण उपमेय में उपमान का संदेह उत्पन्न हो जाता है और यह संदेह अन्त तक बना रहता है तो वहाँ संदेह अलंकार(Sandeh Alankar) माना जाता है।

पहचान – किधों,कि,या, अथवा आदि ‘अथवा’वाचक शब्द या शब्दों के प्रयोग से संदेह अलंकार को पहचानने में सुविधा होती है।

सन्देह अलंकार के उदाहरण –

 ✦ यह काया है या शेष उसी की छाया,
क्षण भरे उनकी कुछ नहीं समझ में आया।
स्पष्टीकरण - दुबली-पतली उर्मिला को देख कर लक्ष्मण यह निश्चय नहीं कर सके कि यह उर्मिला की काया है या उसका शरीर । यहां सन्देह बना हैं।
 "सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।।"
स्पष्टीकरण - महाभारत काल में द्रौपदी के चीर हरण के समय उसकी बढ़ती साड़ी को देखकर दुःशासन के मन में यह संशय उत्पन्न हो रहा है कि यह साड़ी के बीच नारी है या नारी के बीच साड़ी है अथवा साड़ी नारी की बनी हुई है या नारी साड़ी से निर्मित है।
 ’हरि-मुख यह आली! किधौं, कैधौं उयो मयंक ?’
स्पष्टीकरण - हे सखी! यह हरि का मुख है या चन्द्रमा उगा है ? यहाँ हरि के मुख को देखकर सखी को निश्चय नहीं होता कि यह हरि का मुख है या चन्द्रमा है। हरि के मुख में हरि-मुख और चन्द्रमा दोनों के होने की संभावना दिखायी पड़ती है।
 ’तारे आसमान के है आये मेहमान बनि, केशों में निशा ने मुक्तावली सजायी है।
बिखर गयो है चूर-चूर ह्वै कै चंद किधौं, कैधों घर-घर दीपावली सुहायी है।’’
स्पष्टीकरण - दीप-मालिका में तारावली, मुक्तामाला और चन्द्रमा के चूर्णीभूत कणों का संदेह होता है।
✦ "चमकत कैंधों सूर सूरजा दुधार किंधौ, सहर सतारा को सितारा चमकत है ?"
स्पष्टीकरण - छत्रपति शिवाजी का खड्ग चमक रहा है अथवा सतारा नगर (शिवाजी की राजधानी) का भाग्य सूचक सितारा चमक रहा है। इसका संशय बने रहने के कारण संदेह अलंकार है।

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