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श्रृंगार रस के उदाहरण | Shringar Ras ke Udaharan

इस आर्टिकल में हम श्रृंगार रस के उदाहरण को पढ़ेंगे। इस टॉपिक से सभी परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते है। हम यहां पर श्रृंगार रस के सभी भेदों/प्रकार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी लेके आए है। Hindi में श्रृंगार रस से संबंधित बहुत सारे प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं और राज्य एवं केंद्र स्तरीय बोर्ड की सभी परीक्षाओं में यहां से questions पूछे जाते है। Shringar ras in hindi grammar रस इन हिंदी के बारे में उदाहरणों सहित इस पोस्ट में सम्पूर्ण जानकारी दी गई है।  तो चलिए शुरू करते है –

श्रृंगार रस के 10 उदाहरण | Shringar Ras ke 10 Udaharan

कर मुंदरी की आरसी, प्रतिबिम्बित प्यौ पाइ।
पीठ दिये निधरक लखै, इकटक दीठि लगाइ॥

स्पष्टीकरण–
स्थायी भाव–रति
आश्रय–नवोढ़ा बधू
आलम्बन–प्रियतम (नायक)
उद्दीपन–प्रियतम का प्रतिधिम्ब
अनुभाव–एक टंक से प्रतिविंब को देखना
व्यभिचारी भाव–हर्ष, औत्सुक्य

श्रृंगार रस के 10 उदाहरण | Shringar Ras ke 10 Udaharan

देखन मिस मृग-बिहँग-तरू, फिरति बहोरि-बहोरि।
निरख-निरखि रघुबीर-छबि, बाढ़ी प्रीति न थोरि॥

गोपी ग्वाल गाइ गो सुत सब,
अति ही दीन बिचारे।
सूरदास प्रभु बिनु यौं देखियत,
चंद बिना ज्यौं तारे।।

रे मन आज परीक्षा तेरी!
सब अपना सौभाग्य मानावें।
दरस परस नि:श्रेयस पावें।
उध्दारक चाहें तो आवें।
यही रहें यह चेरी! 

श्रृंगार रस के 10 उदाहरण | Shringar Ras ke 10 Udaharan

मेरे तो गिरधर गोपाला, दूसरो ना कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।

दरद कि मारी वन-वन डोलू वैध मिला नाहि कोई।
मीरा के प्रभु पीर मिटै, जब वैध संवलिया होई।।

मैं निज अलिंद में खड़ी थी सखि एक रात
‎‎‎‎रिमझिम बूदें पड़ती थी घटा छाई थी ।
गमक रही थी केतकी की गंध चारों ओर
झिल्ली झनकार यही मेरे मन भायी थी ।

एक पल ,मेरे प्रिया के दृग पलक
थे उठे ऊपर, सहज नीचे गिरे ।
चपलता ने इस विकंपित पुलक से,
दृढ़ किया मानो प्रणय संबन्ध था ।।

श्रृंगार रस के उदाहरण | Shringar Ras ke Udaharan

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनु हँसे , दैन कहै , नटि जाय।।
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैननु ही सों बात॥”

लता ओर तब सखिन्ह लखाए।
श्यामल गौर किसोर सुहाए।।
थके नयन रघुपति छबि देखे।
पलकन्हि हूँ परिहरी निमेषे।।
अधिक सनेह देह भई भोरी।
सरद ससिहिं जनु चितव चकोरी।।

तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥

श्रृंगार रस के उदाहरण | Shringar Ras ke Udaharan

धो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
इन्द्री सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करे, भौंहनि हँसे, दैन कहै, नटि जाय।

नैना अंतरि आव तूँ, ज्यों हो नैन झांपेऊ।
ना हौं देखाें और कूँ, नॉं तुझ देखन देऊँ।।

श्रृंगार रस के उदाहरण | Shringar Ras ke Udaharan

थके नयन रघुपति छवि देखे।
पलकन्हि हु परिहरि निमेखे।।
अधिक सनेह देह भई भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।

राम के रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं । 
याती सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ।

दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुंदर मंदिर माही।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाही।।
राम को रूप निहारित जानकि कंकन के नग की परछाही।
यातें सबै भूलि गई कर टेकि रही, पल टारत नाहीं।। – तुलसीदास

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