श्रृंगार रस : Shringar Ras – Shringar Ki Paribhasha
Shringar Ras in Hindi – इस आर्टिकल में हम श्रृंगार रस किसे कहते कहते हैं, के भेद/प्रकार और उनके प्रकारों को उदाहरण के माध्यम से पढ़ेंगे। इस टॉपिक से सभी परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते है। हम यहां पर श्रृंगार रस के सभी भेदों/प्रकार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी लेके आए है। Hindi में श्रृंगार रस से संबंधित बहुत सारे प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं और राज्य एवं केंद्र स्तरीय बोर्ड की सभी परीक्षाओं में यहां से questions पूछे जाते है। Shringar ras in hindi grammar के बारे में उदाहरणों सहित इस पोस्ट में सम्पूर्ण जानकारी दी गई है। तो चलिए शुरू करते है –
श्रृंगार रस | Shringar Ras
श्रृंगार रस : – जहां पर स्थाई भाव विशेषतः दाम्पत्य रति/ प्रेम होता है, वहां श्रृंगार रस होता है। नायक – नायका या प्रेमी – प्रेमिका के प्रेम की अभिव्यंजना ही श्रृंगार रस है। जब विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी के संयोग से रति नामक स्थायी भाव रस रूप में परिणत हो, तो उसे शृंगार रस कहते हैं। शृंगार रस को रसराज अर्थात रसों का राजा भी कहा जाता है।
जब विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी के संयोग से ‘रति/प्रेम’ नामक स्थायी भाव ‘रस’ रूप में परिणत होता है, तो उसे शृंगार रस कहते है। शृंगार रस को ‘रसराज’ अर्थात ‘रसों का राजा’ व रसपति भी कहा जाता है।
श्रृंगार रस की परिभाषा | Shringar Ki Paribhasha
श्रृंगार रस:- श्रृंगार रस का विषय प्रेम होता है। पुरुष के प्रति स्त्री के हृदय में या स्त्री के प्रति पुरुष के हृदय में जो प्रेम जागृत होता है उसी की व्यंजना श्रृंगार-काव्य में होती है,जैसे- सीता और राम का प्रेम या गोपियों और कृष्ण का प्रेम
अथवा
नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित रति या प्रेम जब रस की अवस्था को पहुँचकर आस्वादन के योग्य हो जाता है तो वह ‘श्रृंगार रस’ कहलाता है।
श्रृंगार रस के अवयव – Shringar Ras In Hindi
गार रस के अवयव |
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श्रृंगार रस का स्थाई भाव – रति। |
श्रृंगार रस का आलंबन (विभाव) – नायक और नायिका। |
श्रृंगार रस का उद्दीपन (विभाव) – आलंबन का सौदर्य, प्रकृति, रमणीक उपवन, वसंत-ऋतु, चांदनी, भ्रमर-गुंजन, पक्षियों का गुंजन, आदि। |
श्रृंगार रस का अनुभाव – अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, कटाक्ष, अश्रु, आदि। |
श्रृंगार रस का संचारी भाव – हर्ष, जड़ता, निर्वेद, अभिलाषा, चपलता, आशा, स्मृति, रुदन, आवेग, उन्माद, आदि। |
- श्रृंगार रस का स्थाई भाव ‘रति‘ ( प्रेम ) है।
- श्रृंगार रस का संचारी भाव – उग्रता , मरण , जुगुप्सा जैसे भावों को छोड़कर सभी हर्ष, जड़ता, निर्वेद, आवेग, उन्माद, अभिलाषा आदि आते है ।
- श्रृंगार रस का अनुभव – अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, रोमांच, अनुराग आदि है।
- श्रृंगार रस का उद्दीपन विभाव – सुन्दर प्राकृतिक दृश्य, वसंत, संगीत, प्रिय की चेष्टाएं।
- श्रृंगार रस का आल्मबन भाव – प्रेम – पात्र स्त्री या पुरुष, अर्थात् नायक या नायिका, प्रक्रति, वसंत, ऋतू, पक्षियों की कुजन, रमणीक उपवन आदि है।
श्रंगार दो प्रकार का होता है –
(1) संयोग या सम्भोग श्रृंगार रस– जब प्रेमी और प्रेम पात्र जुदा नहीं हो
(2) वियोग या विप्रलम्भ – जब प्रेम पात्र एक-दूसरे से जुदा हों। इसमें विरह-व्याकुलता की व्यंजना होती हैं।
संयोग या सम्भोग श्रृंगार – जहां पर नायक – नायिका का मिलन अनुहार ( हंसी – मजाक, छीना – झपटी ) तथा सब कुछ हो जाए। वहां पर संयोग श्रृंगार रस होता है।
संयोग श्रृंगार रस के उदाहरण | Sanyog Shringar Ras ke Udaharan
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करे, भौंहनि हँसे, दैन कहै, नटि जाय। – बिहारी लाल
नैना अंतरि आव तूँ, ज्यों हो नैन झांपेऊ।
ना हौं देखाें और कूँ, नॉं तुझ देखन देऊँ।।
थके नयन रघुपति छवि देखे।
पलकन्हि हु परिहरि निमेखे।।
अधिक सनेह देह भई भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।
राम के रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं ।
याती सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ।
वियोग या विप्रलम्भ श्रृंगार रस – नायिका एक दूसरे से दूर – दूर हों और एक – दुसरे से मिलन के लिए तड़प रहे हों, वहां पर वियोग श्रृंगार रस होता है ।
वियोग श्रृंगार रस के उदाहरण | Viyog Shringar Ras ke Udaharan
मैं निज अलिंद में खड़ी थी सखि एक रात
रिमझिम बूदें पड़ती थी घटा छाई थी ।
गमक रही थी केतकी की गंध चारों ओर
झिल्ली झनकार यही मेरे मन भायी थी ।
तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥
धो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
इन्द्री सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥
श्रृंगार रस के उदाहरण | Shringar Ras ke Udaharan
कर मुंदरी की आरसी, प्रतिबिम्बित प्यौ पाइ।
पीठ दिये निधरक लखै, इकटक दीठि लगाइ॥
स्पष्टीकरण–
स्थायी भाव–रति
आश्रय–नवोढ़ा बधू
आलम्बन–प्रियतम (नायक)
उद्दीपन–प्रियतम का प्रतिधिम्ब
अनुभाव–एक टंक से प्रतिविंब को देखना
व्यभिचारी भाव–हर्ष, औत्सुक्य
देखन मिस मृग-बिहँग-तरू, फिरति बहोरि-बहोरि।
निरख-निरखि रघुबीर-छबि, बाढ़ी प्रीति न थोरि॥
गोपी ग्वाल गाइ गो सुत सब,
अति ही दीन बिचारे।
सूरदास प्रभु बिनु यौं देखियत,
चंद बिना ज्यौं तारे।।
मेरे तो गिरधर गोपाला, दूसरो ना कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।
दरद कि मारी वन-वन डोलू वैध मिला नाहि कोई।
मीरा के प्रभु पीर मिटै, जब वैध संवलिया होई।।
श्रृंगार रस का स्थाई भाव ‘रति‘ ( प्रेम ) है।
श्रृंगार रस का संचारी भाव – उग्रता , मरण , जुगुप्सा जैसे भावों को छोड़कर सभी हर्ष, जड़ता, निर्वेद, आवेग, उन्माद, अभिलाषा आदि आते है।
श्रृंगार रस का अनुभव – अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, रोमांच, अनुराग आदि है।
श्रृंगार रस का उद्दीपन विभाव – सुन्दर प्राकृतिक दृश्य, वसंत, संगीत, प्रिय की चेष्टाएं।
श्रृंगार रस का आल्मबन भाव – प्रेम – पात्र स्त्री या पुरुष, अर्थात् नायक या नायिका, प्रक्रति, वसंत, ऋतू, पक्षियों की कुजन, रमणीक उपवन आदि है।
दोस्तो हमने इस आर्टिकल में Shringar Ras in Hindi के साथ – साथ Shringar Ras kise kahate hain, Shringar Ras ke bhed के बारे में पढ़ा। हमे उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। आपको यहां Hindi Grammar के सभी टॉपिक उपलब्ध करवाए गए। जिनको पढ़कर आप हिंदी में अच्छी पकड़ बना सकते है।