वीर रस के उदाहरण | Veer Ras ka Udaharan
वीर रस:- वीर रस का विषय उत्साह या जोश होता है। युद्ध करने के लिए अथवा नीति धर्म आदि की दुर्दशा को मिटाने जैसे कठिन कार्यों के लिए मन में उत्पन्न होने वाले उत्साह से वीर रस जागृत होता है।
वीर रस के उदाहरण | Veer Ras ka Udaharan
“तनिक कर भाला यूं बोल उठा,
राणा!मुझको विश्राम न दे।
मुझको वैरी से हृदय-क्षोभ
तू तनिक मुझे आराम न दे॥
साजि चतुरंग सैन अंग उमंग धारि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है।
भूषन भनत नाद बिहद नगारन के
नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं।।
माता ऐसा बेटा जानिये
कै शूरा कै भक्त कहाय।
वीर रस के उदाहरण | Veer Ras ka Udaharan
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु
लीलेहु ताहि मधुर फल जानू।
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था।।
बुंदेलों हरबोलों के मुह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
भुज भुजगेस की वै संगिनी भुजंगिनी – सी,
खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलन के।
बखतर पाखरन बीच धँसि जाति मीन,
पैरि पार जात परवाह ज्यों जलन के।
रैयाराव चम्पति के छत्रसाल महाराज,
भूषन सकै करि बखान को बलन के।
पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने वीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।
वीर रस के उदाहरण | Veer Ras ka Udaharan
ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये।।
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये।।
सौमित्रि से घननाद का रव अल्प भी न सहा गया।
निज शत्रु को देखे विना, उनसे तनिक न रहा गया ।।
रघुवीर से आदेश ले युद्धार्थ वे सजने लगे ।
रणवाद्य भी निर्घाष करके धूम से बजने लगे ।।
ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥
निकसत म्यान तें मयूखैं प्रलैभानु कैसी,
फारैं तमतोम से गयंदन के जाल कों।
चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
करता था भूतल पानी को।
राणा प्रताप सर काट काट,
करता था सफल जवानी को।।
पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने वीर।
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।।
बातन बातन बतबढ़ होइगै, औ बातन माँ बाढ़ी रार,
दुनहू दल मा हल्ला होइगा दुनहू खैंच लई तलवार।
पैदल के संग पैदल भिरिगे औ असवारन ते असवार,
खट-खट खट-खट टेगा बोलै, बोलै छपक-छपक तरवार।।
वीर रस के उदाहरण | Veer Ras ka Udaharan
बुन्देलों हरबोलो के मुह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
बात बातन बाद बाद होईगई, और बात मां बड़ी रार,
दुंहु दल मा हल्ला होगा दुन्हु खिंच लाई तलवार।
पैदल और घोड़े पर पैदल,
नॉक-नॉक-नॉक-नॉक कहेंगे, छप-छप तलवार कहा।
लागति लपटि कंठ बैरिन के नागिनी सी,
रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडन के माल कों।।
फहरी ध्वजा, फड़की भुजा, बलिदान की ज्वाला उठी।
निज जन्मभू के मान में, चढ़ मुण्ड की माला उठी।
धनुष उठाया ज्यों ही उसने,
और चढ़ाया उस पर बाण
धरा सिंधु नभ सहसा कांपे
विकल हुए जीवों के प्राण।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
साजि चतुरंग सन अंग उमंग धारी,
सरजा शिवाजी युद्ध जीत रहे हैं।।
भूषण भंत नाद बिहड़ नागरन के,
नदी नद मद गबरन की रालत॥
भामिनी देहूं सब लोक तज्यु हटा मोरे है मन भाई।
लोक चतुर्दश का सुख और धन बिना दुख के खर्च होता है।।
आइए हम उनके घर में बस जाएं और जुड़वा जोड़े की सेवा करें।
यदि आप रुचि नहीं रखते हैं तो आप हमेशा मुझमें रुचि रखते हैं।।
द्रौपदी बेफिक्र होकर फिरती है, परवाह नहीं करती,
धन, ऐश्वर्य और राजसत्ता की कोई इच्छा नहीं है।
सबसे पहले पांडवों और युधिष्ठिर का नाश होगा,
तभी बुझेगा धर्म का दीया।।
हाथ में झंडा लेकर बच्चों की महफ़िल सजती है,
झंडा कभी झुका नहीं पार्टी कभी रुकी नहीं
सामने पहाड़ हो, शेर की दहाड़ हो।
तुम निडर डरो मत तुम निडर खड़े रहो
वीर तुम बढ़ते जाओ, तुम धीर बढ़ते जाओ।
सच कह रहा हूँ मित्र, मुझे सुकुमार मत समझो,
यमराज से युद्ध में भी सदैव मेरी आज्ञा का पालन करना।
और क्या बात है, मुझे गर्व नहीं है,
वह मामा और अपने पिता से भी लड़ने से नहीं डरता।
लेकिन अब मेरी जमीन पर कोई अत्याचार नहीं होगा,
और किसी निर्बल पर अत्याचार न होगा।
अब हाटों में नहीं होगी गरीबी की नीलामी,
विनम्रता से कोई आंख बीमार नहीं होगी।।