वृत्यानुप्रास अलंकार की परिभाषा और उदाहरण | Vratyanupras Alankar
वृत्यानुप्रास अलंकार की परिभाषा :-
जहां किसी वर्ण की आवृति दो से अधिक बार हो वहां ‘वृत्याअनुप्रास‘ होता है।
यह अलंकार शब्दालंकार के छः भेद में से अनुप्रास अलंकार का एक भेद है।
उदाहरण:-
1. विरती विवेक विमल विज्ञाना।
(‘व’ वर्ण की आवृत्ति दो से अधिक बार हुई है।)
2. रस सिंगार मंजनु किये,कंजनु भंजनु नैन
अंजनु रंजनु हूँ बिना, खंजनु गंजनु नैन।
(‘अंजनु’ शब्द की आवृत्ति सात बार हुई है।)
3. भटक भावनाओं के भ्रम में भीतरी था भूल रहा।
यहां ‘भ‘ वर्ण की आवृति दो से अधिक बार हुई है।
4. निपट नीरव नन्द – निकेत में।
यहां ‘न‘ वर्ण की आवृति दो से अधिक बार हुई है।
Vratyanupras Alankar ke udaharan :-
1.चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल-थल में।
2. भव्य भावों में भयानक भावना भरना नहीं।
3. निर्ममता निरीह पुरुषों में निस्संदेह निरखती हो।
4. गंधी गंध गुलाब को गंवाई गाहक कौन?
5. काले कुत्सित किट का कुसुम में कोई नहीं काम था।
अनुप्रास अलंकार के भेद-
(i) छेका अनुप्रास
(ii) वृत्या अनुप्रास
(iii) श्रुत्या अनुप्रास
(iv) अन्तयानुप्रास
(v) लाटानुप्रास