त्यतिरेक अलंकार परिभाषा,उदाहरण || Vyatirek Alankar in hindi – त्यतिरेक अलंकार, अर्थालंकार का भेद है। यहां पर हम त्यतिरेक अलंकार की परिभाषा तथा उदाहरण के बारे में पढ़ने जा रहे हैं, त्यतिरेक अलंकार की सम्पूर्ण जानकारी आपको इस लेख में मिल जाएगी। पोस्ट के अंत में आपके लिए परीक्षापयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्न दिए गए है।
व्यतिरेक अलंकार की परिभाषा | Vyatirek Alankar ki paribhasha –
जब किसी पद में उपमान की अपेक्षा उपमेय कोई (भली या बुरी) बात प्रस्तुत की जाए अर्थात् इस अलंकार में उपमान की अपेक्षा उपमेय को काफी बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है वहाँ व्यतिरेक अलंकार माना जाता है।
यहाँ उपमेय ‘यश’ और ‘प्रताप’ को उपमान ‘शशि’ एवं ‘सूर्य’ से भी उत्कृष्ट कहा गहा है।
व्यतिरेक में कारण का होना जरूरी है। अतः जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ पर व्यतिरेक होता हैं।
व्यतिरेक अलंकार का अर्थ – ‘व्यतिरेक’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘आधिक्य’। व्यतिरेक अलंकार में कारण का होना अनिवार्य है।
व्यतिरेक अलंकार के उदाहरण –
का सरवरि तेहिं देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू॥ यहां पर कहा गया की उसके मुख को चन्द्रमा की उपमा क्या दी जाए? चन्द्रमा में कंलक है और मुख निष्कलंक है अतः यहां मुख चन्दमा से बढ़कर है।
जनम सिंधु पुनि बंधु विष, दिन मलीन सकलंक। सिय मुख समता पाव किमि, चंद बापुरो रंक।। यहां पर पद में उपमान (चन्द्र) की अपेक्षा उपमेय (सिय मुख) की शोभा का उत्कर्षपूर्ण वर्णन किया गया है, अतः यहाँ व्यतिरेक अलंकार है।
व्यतिरेक अलंकार के अन्य उदाहरण –
- सिय मुख सरद- कमल जिमि किमि कहि जाय।
निसि मलीन वह, निसि दिन यह विगसाय।। - राधा मुख चन्द्र सा कहते हैं मतिरंक।
निष्कलंक है वह सदा, उसमें प्रकट कलंक।। - जिनके यश प्रताप के आगे।
ससि मलीन रवि सीतल लागे।। - नव विधु विमल तात! जस तोरा।
उदित सदा, कबहूं नहि थोरा।। - सम सुबरन सुखमाकर सुखद न थोर।
सीय अंग सखि कोमल कनक कठोर।।