अद्भुत रस : परिभाषा, भेद और उदाहरण – इस आर्टिकल में हम अद्भुत रस किसे कहते हैं, अद्भुत रस के भेद/प्रकार और उनके प्रकारों को उदाहरण के माध्यम से पढ़ेंगे। इस टॉपिक से सभी परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते है। हम यहां पर अद्भुत रस के सभी भेदों/प्रकार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी लेके आए है। Hindi में Adbhut Rasसे संबंधित बहुत सारे प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं और राज्य एवं केंद्र स्तरीय बोर्ड की सभी परीक्षाओं में यहां से questions पूछे जाते है। Adbhut ras in hindi grammar अद्भुत रस इन हिंदी के बारे में उदाहरणों सहित इस पोस्ट में सम्पूर्ण जानकारी दी गई है। तो चलिए शुरू करते है –
अद्भुत रस की परिभाषा | Adbhut Ras ki Paribhasha
अद्भुत रस:- अद्भुत रस का विषय आश्चर्य या विस्मय होता है। किसी असाधारण अलौकिक या आश्चर्यजनक वस्तु ,दृश्य या घटना देखने, सुनने से मन का चकित होकर विस्मय में आ जाता, अद्भुत रस की उत्पत्ति करता है।
अथवा
विचित्र अथवा आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर हृदय में जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते है, उन्हीं भावों के विकसित रूप को ‘अद्भुत रस’ कहा जाता है।
अद्भुत रस की परिभाषा | Adbhut Ras ki Paribhasha
जिस भाव में विस्मय नामक स्थाई भाव उद्बुद्ध होता है, वहां अद्भुत रस माना जाता है
अद्भुत रस में रोमांच, आँसू आना, काँपना, गदगद होना, आँखें फाड़कर देखना, आदि भाव व्यक्त होते है।
विस्मय में कई प्रकार की स्थितियां होती है; जैसी – असाधारण वस्तुएं,किसी अलौकिक वस्तु या दृश्य को देखना, सुनना, उनसे मिलना आदि। इस प्रकार की जब आश्चर्यजनक स्थितियां सम्मुख आती हैं तो उसे विस्मय कहा जतहै।
उदाहरण –
इहाँ उहाँ दुह बालक देखा,
मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।
देखि राम जननी अकलानी,
प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी।
देखरावा मातहि निज,
अद्भुत रूप अखण्ड।
रोम-रोम प्रति लागे,
कोटि-कोटि ब्रह्मण्ड।। – तुलसीदास
अद्भुत रस के भेद | Adbhut Ras Ke Bhed
अद्भुत रस के कुल 4 भेद है –
1. दृष्ट |
2, श्रुत |
3. अनुमति |
4. संकीर्तित |
अद्भुत रस के अवयव | Adbhut Ras ke Avayav
स्थायी भाव | विस्मय/आश्चर्य |
आलंबन (विभाव) | आश्चर्यकारक या अलौकिक व्यक्ति या वस्तु या दृश्य या घटना |
उद्दीपन (विभाव) | आलम्बन के अद्भुत गुणधर्म ,आलौकिक वस्तुओ का दर्शन, श्रवण, कीर्तन, आदि। |
अनुभाव | एकटक देखना, स्तम्भित होना, दांतों तले उंगली दवाना, आँखें फाड़कर देखना, रोमांच, आँसू आना, काँपना, गदगद होना, आदि। |
संचारी भाव | वितर्क, जड़ता, उत्सुकता, आवेग, भ्रान्ति, धृति, हर्ष, मोह आदि। |
अद्भुत रस के अवयव | Adbhut Ras ke Avayav
स्थाई भाव :- विस्मय/आश्चर्य
अनुभाव :-
- स्तम्भ
- स्वेद
- दांतों तले उंगली दवाना,
- आँखें फाड़कर देखना,
- रोमांच, आँसू आना, काँपना,
- गदगद होना,
- रोमांच
- आश्चर्यचकित भाव
संचारी भाव :-
- वितर्क
- धृति
- जड़ता,
- उत्सुकता
- आवेग,
- भ्रान्ति
- मोह
- आवेग
- हर्ष
- स्मृति
- मति
- त्रास
आलंबन :-
- अलौकिक
- विचित्र वस्तु
- वस्तु
- दृश्य
- व्यक्ति
- घटना
उद्दीपन :- आलम्बन की अद्भुत चेष्टाएँ एवं उसका श्रवण वर्णन, कीर्तन ।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार विस्मय
- कला एवं काव्य के आकर्षण में विस्मय की भावना सबसे अधिक महत्त्व रखती है।
- कवि एवं कलाकार जिस वस्तु का सौन्दर्य चित्रण करना चाहते है, उसमें कोई लोक को अतिक्रान्त करने वाला तत्व वर्तमान रहता है, जो अपनी असाधारणता से भाव को अभिभूत कर लेता है।
- मनोवैज्ञानिकों ने भी विस्मय को प्रधान भावों में गृहीत किया है तथा उसकी प्रवृत्ति ‘जिज्ञासा’ से बताई है। असल में आदिमानव को प्रकृति की क्रीड़ास्थली के संसर्ग में भय एवं आश्चर्य अथवा विस्मय, इन 2 भावों की ही मुख्यतया प्रतीति हुई होगी।
- अंग्रेज़ी साहित्य के रोमांटिक कवियों ने काव्य की आत्मा विस्मय को ही स्वीकार किया था।
अद्भुत रस के उदाहरण | Adbhut Ras Ke Udahran
अखिल भुवन चर अचर जग हरिमुख में लखि मातू।
चकित भायी, गदगद वचन, विकसित दृग, पुलकातु॥
चित अलि कत भरमत रहत कहाँ नहीं बास।
विकसित कुसुमन मैं अहै काको सरस विकास।
मैं फिर भूल गया इस छोटी सी घटना को
और बात भी क्या थी, याद जिसे रखता मन!
किंतु, एक दिन जब मैं संध्या को आँगन में
टहल रहा था, तब सहसा मैंने जो देखा
उससे हर्ष विमूढ़ हो उठा मैं विस्मय से!
देखा, आँगन के कोने में कई नवागत
छोटी-छोटी छाता ताने खड़े हुए हैं।
इहाँ उहाँ दुह बालक देखा।
मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।
देखरावा मातहि निज,
अद्भुत रूप अखण्ड।
रोम-रोम प्रति लागे,
कोटि-कोटि ब्रम्हाण्ड।।
पद पाताल सीस अजयधामा,
अपर लोक अंग-अंग विश्राम।
भृकुटि बिलास भयंकर काला,
नयन दिवाकर कच धन माला।।
देख यशोदा शिशु के मुख में,
सकल विश्व की माया,
क्षणभर को वह बनी अचेतन,
हिल ना सकी कोमल काया।
देखी राम जननी अकलानी।
प्रभू हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी।।
केशव नहीं जाई का कहिये।
देखत तब रचना विचित्र अति
समुझि मनहीं मन दाहिये।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा वह,
स्वयं वीरता की अवतार।
देख मराठे पुलकित होते,
उसकी तलवारों के वार।।
आयु सिता-सित रूप चितैचित,
स्याँम शरीर रगे रँग रातें।
‘केसव’ कॉनन ही न सुनें,
सु कै रस की रसना बिन बातें।।
बिनू पद चलै सुने बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।।