भक्ति रस के उदाहरण | Bhakti Ras Ke Udaharan

भक्ति रस:- भक्ति रस का विषय आराध्य प्रभु के प्रति अनुरक्त का भाव होता है। इनमें आलंबन इष्टदेव या इष्ट देवी होती हैं।
भरतमुनि से पण्डितराज जगन्नाथ तक संस्कृत के किसी प्रमुख काव्य-आचार्य ने ‘भक्ति रस’ को रसशास्त्र के अन्तर्गत मान्यता प्रदान नहीं की है।

भक्ति रस के उदाहरण | Bhakti Ras Ke Udaharan

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। 
जाके सिर मारे मुकुट मेरो पति सोई॥

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी,
जाकी गंध अंग-अंग समाही।

राम जपु, राम जपु, राम जपु, बावरे।
वाल्मिकी भए ब्रम्ह समाना।।

ना किछु किया न करि सक्या, ना करण जोग सरीर।
जो किछु किया सो हरि किया, ताथै भया कबीर कबीर।

राम-नाम छाड़ि जो भरोसो करै और रे।
तुलसी परोसो त्यागि माँगै कूर कौन रे।।

रामनाम गति, रामनाम गति, रामनाम गति अनुरागी।
ह्वै गए, हैं जे होहिंगे, तेई त्रिभुवन गनियत बड़भागी।।

जब-जब होइ धरम की हानी।
बाहिं असुर अधम अभिमानी।।
तब-तब प्रभु धरि मनुज सरीरा।
हरहिं कृपा निधि सज्जन पीरा।

एक भरोसे एक बल, एक आस विश्वास,
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।।

पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु,
किरपा करि अपनायो।
पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो।

दुलहिनि गावहु मंगलचार
मोरे घर आए हो राजा राम भरतार ।।
तन रत करि मैं मन रत करिहौं पंच तत्व बाराती।
रामदेव मोरे पाहुन आए मैं जोवन मैमाती।।

जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी
फूटा कुम्भ, जल जलही समाया, इहे तथ्य कथ्यो ज्ञायनी।

जमकरि मुँह तरहरि पर्यो, इहि धरहरि चित लाउ।
विषय तृषा परिहरि अजौं, नरहरि के गुन गाउ।।

यह घर है प्रेम का खाला का घर नाहीं
सीस उतारी भुई धरो फिर पैठो घर माहि।

उलट नाम जपत जग जाना
वल्मीक भए ब्रह्म समाना।

राम तुम्हारे इसी धाम में
नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ।।

एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास।
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।।

राम सौं बड़ो है कौन मोसो कौन छोटो?
राम सौं खरो है कौन मोसो कौन खोटो?

हे गोविन्द हे गोपाल, हे दया निधान।

जाउँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे।
काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे।
कौने देव बराइ बिरद हित हटि-हठि अधम उधारे।
देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब माया विवस बिचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु, कहा अपनपौ हारे।

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