शब्द – रचना का तीसरा साधन है ‘ समास ‘ ।
समास दो या दो से अधिक शब्दों को आपस में मिलाता है और एक स्वतंत्र शब्द की रचना करता है ।
समास की परिभाषा –
समास का अर्थ है – संक्षिप्त करना ;
जैसे — ‘ दही में डूबा हुआ बड़ा ‘ । इसको हम ‘ दहीबड़ा ‘ भी कह सकते हैं ।
ऐसा कहने पर अर्थ में किसी तरह का परिवर्तन नहीं हुआ और शब्द संक्षिप्त भी हो गया ।
परिभाषा – दो या दो से अधिक शब्दों के योग से एक नए शब्द को बनाने की प्रक्रिया को समास कहते हैं ।
समस्त पद क्या है ? :-
शब्दों को जोड़ने या मिलाने के बाद एक नया शब्द बनता है , उसे समस्त पद कहते हैं ;
जैसे — माता और पिता । यहाँ माता – पिता समस्त पद है ।
विग्रह किसे कहते हैं ? —समस्त पद को फिर से पूर्व अवस्था में लाने की क्रिया को विग्रह कहते हैं ;
जैसे – चौमासा अर्थात् चार मासों का समूह । यहाँ चार माहों का समूह विग्रह है ।
संधि एवं समास में अंतर -1 संधि वर्गों में होती है , समास शब्दों में होता है ।।
- संधि में विभक्तियों या शब्दों का लोप नहीं होता समास होने पर विभक्तियों या शब्दों का लोप भी हो सकता है । जैसे – राम – लक्ष्मण = राम और लक्ष्मण ।
समास के भेद ( Kinds of Compound )
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- कर्मधारय समास
- बहुव्रीहि समास
- द्विगु समास
- वंद्व समास
( 1 ) अव्ययीभाव समास ( Governing Compound ) – जिस सामासिक शब्द में पहला शब्द प्रधान हो , वह अव्यय हो तथा उसके योग से समस्त पद भी अव्यय बन जाए , उसे अव्ययीभाव समास कहते है ;
जैसे :-
विग्रह | समस्त पद |
शक्ति के अनुसार | यथाशक्ति |
क्रम अनुसार | यथाक्रम |
जीवनभर | आजीवन |
प्रत्येक क्षण | प्रतिक्षण |
विधि के अनुसार | यथाविधि |
सामर्थ्य के अनुसार | यथासामर्थ्य |
इन सभी शब्दों में प्रथम पद प्रधान है तथा द्वितीय पद गौण है ; अत : यहाँ अव्ययीभाव समास है ।
( 2 ) तत्पुरुष समास ( Determinative Compound ) – जिस समास के समस्त पद का पूर्व पद संज्ञा हो तथा गौण हो । और उत्तर पद प्रधान हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं । इसके विग्रह में कारक चिह्नों का प्रयोग होता है , किंतु समस्त पदों में । उनका लोप होता है ;
जैसे — देश के लिए भक्ति = देशभक्ति ।
तत्पुरुष समास के भेद
- ( क ) कर्म तत्पुरुष
- ( ख ) करण तत्पुरुष
- ( ग ) संप्रदान तत्पुरुष
- ( घ ) अपादान तत्पुरुष
- ( ङ ) अधिकरण तत्पुरुष
- ( च ) संबंध तत्पुरुष
( क ) कर्म तत्पुरुष समास – जिस समास के प्रथम पद में द्वितीय विभक्ति ( कर्म कारक ‘ को ‘ ) लगती है , उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं :
जैसे :-
विग्रह | समस्त पद |
स्वर्ग का वास | स्वर्गवास |
गाँव को गया हुआ | ग्रामगत |
यश को प्राप्त | यश प्राप्त |
( ख ) करण तत्पुरुष समास – जिस समास के प्रथम पद में तृतीय विभक्ति ( करण कारक ‘ से , के साथ , के द्वारा ‘ ) छिपा हो , उसे करण तत्पुरुष समास कहते हैं ;
जैसे :-
विग्रह | समस्त पद |
प्रभु को दिया हुआ | प्रभुदत्त |
तुलसी के द्वारा किया हुआ | तुलसीकृत |
हस्त से लिखित | हस्तलिखित |
( ग ) संप्रदान तत्पुरुष समास – जिस समास के प्रथम पद में चतुर्थी विभक्ति ( संप्रदान कारक ‘ के लिए , को ‘ ) लगती है , उसे संप्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं ;
जैसे :-
विग्रह | समस्त पद |
सोने के लिए कक्ष | शयनकक्ष |
मार्ग के लिए व्यय | मार्गव्यय |
युद्ध के लिए भूमि | युद्धभूमि |
( घ ) अपादान तत्पुरुष समास – जिस समास के प्रथम पद में पंचमी विभक्ति ( अपादान कारक ‘ से ‘ अलग होने के लिए ) लगती है , उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं ;
जैसे :-
विग्रह | समस्त पद |
आकाश से गिरा हुआ | आकाशपतित |
देश से निकला | देशनिकाला |
( ङ ) संबंध तत्पुरुष समास – जिस समास के प्रथम पद में षष्ठी विभक्ति ( संबंध कारक ‘ का , के , की ‘ ) लगती है , जै उसे संबंध तत्पुरुष समास कहते हैं ;
जैसे :-
विग्रह | समस्त पद |
गंगा का जल | गंगाजल |
पवन का पुत्र | पवनपुत्र |
देश का भक्त | देशभक्त |
राम का अनुज | रामानुज |
(च) अधिकरण तत्पुरुष समास – जिस समास के प्रथम पद में सप्तमी विभक्ति ( अधिकरण में , पर ‘ ) लगती है , उसे समस्त पद आनंदमग्न नगरवास अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं ;
जैसे :-
विग्रह | समस्त पद |
आनंद में मग्न | आनंदमग्न |
नगर में वास | नगरवास |
( 3 ) कर्मधारय समास ( Descriptive Determinative Compound ) – जिस समस्त पद का उत्तर पद प्रधान हो तथा पूर्व पद एवं उत्तर पद में विशेषण – विशेष्य अथवा उपमान , उपमेय का संबंध हो , उसे कर्मधारय समास कहते हैं ;
जैसे :-
विशेषण – विशेष्य –
विग्रह | समस्त पद |
महान है जो देव | महादेव |
नीली है जो गाय | नीलगाय |
पीत है जो अम्बर | पीताम्बर |
उपमान – उपमेय –
विग्रह | समस्त पद |
कमल के समान नयन | कमलनयन |
चंद्र के समान मुख | चंद्रमुख |
घन के समान श्याम | घनश्याम |
( 4 ) बहुव्रीहि समास ( Possessive Compound ) — जिस सामासिक पद में दोनों पद प्रधान न हों , परंतु समस्त पद किसी और ही अर्थ का वाचक हो , उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं ;
जैसे :-
विग्रह | समस्त पद | अन्य अर्थ |
धर्म में आत्मा वाला | धर्मात्मा | युधिष्ठिर |
दीर्घ बाहु वाला | दीर्घबाहु | विष्णु |
( 5 ) द्विगु समास ( Descriptive Numeral Compound ) — जिस समस्त पद का उत्तर पद प्रधान हो तथा पूर्व पद संख्यावाची हो , उसे द्विगु समास कहते हैं । यह समूह का द्योतक होता है । इसके पूर्व पद तथा उत्तर पद में विशेषण – विशेष्य का अंतर होता है
विग्रह | समस्त पद |
चार मासों का समूह | चौमासा |
चार राहो का समूह | चौराहा |
दो पहरों का समूह | दोपहर |
नौ ग्रहो का समूह | नवग्रह |
( 6 ) द्वंद्व समास ( Co – ordinative Compound ) – वंद्व का अर्थ है दोनों अर्थात् जिस समास में दोनों पद प्रधान | हों , उसे द्वंद्व समास कहते हैं । इनको मिलाने वाले समुच्चयबोधक अव्यय ( और , तथा , एवं , व ) का लोप हो जाता है ;
जैसे :-
विग्रह | समस्त पद |
राम और लक्ष्मण | राम - लक्ष्मण |
सुख और दुःख | सुख - दुःख |
दिन और रात | दिन - रात |
राधा और कृष्ण | राधा - कृष्ण |
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर
कर्मधारय में समस्त पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है । इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है ; जैसे — नीलकंठ = नीला कंठ । बहुव्रीहि में विशेषण – विशेष्य का अंतर नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य से संज्ञादि का विशेषण होता है । इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है ; जैसे – नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव ।
विशेष — जैसा विग्रह होता है वैसा समास होगा
पीताम्बर = पीले कपडे वाला अर्थात कृष्ण ( बहुव्रीहि )
पीताम्बर = पीला कपडा ( कर्मधारय )