वक्रोक्ति अलंकार-
जब किसी व्यक्ति के एक अर्थ में कहे गए शब्द या वाक्य का कोई दूसरा व्यक्ति जान बूझकर दूसरा अर्थ कल्पित करें।
अथवा
जहाँ पर वक्त के द्वारा बोले गए शब्दों को श्रोता अलग अर्थ निकाले उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते है।
वक्रोक्ति अलंकार का अर्थ –
वक्रोक्ति शब्द ’वक्र+उक्ति’ के योग से बना है, जिसका अर्थ है टेढ़ा कथन
वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण –
✦ है पशुपाल कहाँ सजनी! जमुना-तट धेनु चराय रहो री।
लक्ष्मी कहती है- वह पशुपाल ( पशुपति – शिव का नाम) कहाँ है? पार्वती पशुपाल का दूसरा अर्थ पशुओं का पालक कल्पित करके उत्तर देती है-यमुना-तट के किनारे गायें चरा रहा होगा (विष्णु कृष्णावतार में यमुना-तट पर गायें चराते थे।)
वक्रोक्ति अलंकार के भेद-
(i) काकु-वक्रोक्ति
(ii) श्लेष वक्रोक्ति
(i) काकु -वक्रोक्ति अलंकार :- कंठ ध्वनि की विशेषता से अन्य अर्थ कल्पित हो जाना ही काकू-वक्रोक्ति अलंकार होता हैं।
उदाहरण –
✦ आये हो मधुमास के प्रियतम ऐैहैं नाहीं।
आये हू मधुमास के प्रियतम एैहैं नाहिं?
(ii) श्लेष वक्रोक्ति अलंकार :-जहां पर श्लेष की वजह से वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाए वहां श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण –
✦ एक कबूतर देख हाथ में पूछा,कहां अपर है?
उसने कहा अपर कैसा? वह तो उड़ गया सफर है॥
वक्रोक्ति अलंकार उदाहरण | Vakrokti Alankar ke Udaharan –
कौन द्वार पर? हरि मैं राधे!
क्या वानर का काम यहाँ?
राधा भीतर से पूछती है-बाहर तुम कौन हो? कृष्ण उत्तर देते हैं-राधे मैं हरि हूँ। राधा हरि का अर्थ कृष्ण न लगाकर वानर लगाती है और कहती है कि इस नगर में वानर का क्या काम?
कृष्ण द्वारा एक अर्थ में कहे गये ’हरि’ शब्द का राधा दूसरा अर्थ वानर कल्पित करती है।