वात्सल्य रस की परिभाषा | Vatsalya Ras ki Paribhasha
वात्सल्य रस:- वत्सल रस का विषय पुत्र,पुत्री,अनुज,शिष्य आदि के प्रति प्रेम होता है। छोटे बालक – बालिकाओं की मधुर चेष्टा उनकी बोली के प्रति माता-पिता की ममता एवं से वत्सल रस की उत्पत्ति होती है।
अथवा
माता-पिता का अपने पुत्र, आदि पर जो नैसर्गिक स्नेह होता है, उसे ‘वात्सल्य’ कहते है।
जो भाव शिशु संबंधी प्रेम या संतान प्रेम अर्थात वात्सल्य नामक स्थाई भाव उत्पन करता है, उसे वत्सल रस माना जाता हैं।
इसमें शिशु के पालने से उत्पन्न प्रेम की अभिव्यक्ति होती है।
वात्सल्य रस के प्रकार –
वात्सल्य रस के भेद | Vatsalya Ras Ke Bhed
आनन्दप्रकाश दीक्षित ने अपने शोधग्रन्थ ‘काव्य में रस’ में वात्सल्य रस के कुल 4 भेद बताए है, जो इस प्रकार है:-
वात्सल्य रस के भेद |
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1. गच्छत्प्रवास |
2. प्रवासस्थित |
3. प्रवासागत |
4. करुण |
ये चारों वियोग – वात्सल्य के उपभेद है, जो स्वयं एक भेद है।
श्रृंगार रस की भांति वात्सल्य रस के भी 2 भेद किये गए है, जो कि निम्न प्रकार है:-
- संयोग वात्सल्य रस
- वियोग वात्सल्य रस
1. संयोग वात्सल्य रस
जहाँ पर स्नेह संयोग रूप में उमड़ता है, तो वहाँ पर संयोग वात्सल्य रस होता है।
संयोग वात्सल्य रस के उदाहरण
वरदंत की पंगत कुंद कली अधराधर पल्लव खोलन की,
चपला चमके घन बीच जगे, छवि मोतिन मॉल अमोलन की।
घुघरारी लटे लटके मुख ऊपर कुंडल लाल कपोलन की,
न्योछावर प्राण करे तुलसी बलि जाऊ लला इन बोलन की।।
2. वियोग वात्सल्य रस
जहाँ पर प्रेम व अनुराग वियोग रूप में उमड़ता है, तो वहाँ पर वियोग वात्सल्य रस होता है।
वियोग वात्सल्य रस के उदाहरण
संयोग वात्सल्य
जहाँ पर संयोग रूप में स्नेह उमड़ता है वहां संयोग वात्सल्य रस होता है
वात्सल्य रस के अवयव –
रस का नाम | वात्सल्य रस |
स्थाई भाव | वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल है। |
आलंबन (विभाव) | माता-पिता, संतान, बालक, शिशु, शिष्य, पुत्र, बालक आदि। |
उद्दीपन (विभाव) | भोली – भाली चेस्टाएं, तुतलाना, चंचलता, नटखटपन, सुंदरता, बाल क्रीड़ा, माता-पिता-संतान के बीच की गतिविधि, भोली-भाली चेष्टाएँ, चंचलता, नटखटपन, माता-पिता-संतानएँ, तुतलाना, हठ करना तथा उसके रूप एवं उसकी वस्तुएँ, आदि। |
अनुभाव | चुम्बन, स्पर्श, मुग्ध होना, आश्रय की चेष्टायें, प्रसन्नता का भाव, स्नेह से बालक को गोद मे लेना, आलिंगन करना, सिर पर हाथ फेरना, थपथपाना, आदि। |
संचारी भाव | हर्ष, गर्व, मौतुसक्य, अभिलाषा, मोह, अभिलाषा, आशा, आवेद, उत्साह, हास, चिंता, चपलता, आवेग, उत्सुकता, अमर्ष, शोक, हास, चिंता, शंका, विस्मय, स्मरण, आदि। |
स्थाई भाव :- वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल है।
अनुभाव :-
- आलिंगन
- चुम्बन
- मुख प्रसन्न होना
- स्पर्श
- मुग्ध होना
- चूमना
- आश्रय की चेष्टायें
- प्रसन्नता का भाव
- बलैया लेना
संचारी भाव :-
- मौतुसक्य
- हर्ष
- गर्व
- अभिलाषा
- शंका
- विस्मय
- स्मरण
- आशा
- चपलता
- आवेग
- अमर्ष
- शोक
- हास
- चिंता
- शंका
- विस्मय
आलंबन :-
- माता-पिता
- अनुज
- संतान
- बालक
- शिष्य
उद्दीपन :-
- आलम्बन की चेष्टाएं
- माता-पिता-संतान के बीच की गतिविधि
- भोली-भाली चेष्टाएं
- तुतलाना ,चंचलता
- बाल – क्रिडाएं
- नटखटपन
- सुंदरता आदि
वात्सल्य रस के उदाहरण | Vatsalya Ras Ke Udaharan
बाल दशा मुख निरखि यशोदा
पुनि-पुनि नंद बलावती।
अँचरा तक लैं ढाँकि
सूर के प्रभु को दूध पियावति॥
बर दंत की पंगति कुंद कली, अधराधर पल्लव खोलन की।
चपला चमके घन-बीच जगै छवि, मोतिन माल अमोलन की।
घुंघराली लटें लटके मुख- अपर, कुंडल लोल कपोलन की।
निबछावर प्रान करें ‘तुलसी’ बलि जाऊ लला इन बोलन की।
मैया मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायो।
मैं बालक बहियन को छोटो छीको केहि विधि पायो।
सदेसो देवकी सो कहियो।
हौं तो धाय तिहारे सुत की, कृपा करति ही रहियौ ।
जदपि देव तुम जानति है हौ, तऊ मोहि कहि आवै।
प्रात होत मेरे लाल लड़ैते, माखन रोटी भावै॥
मैया मैं तो चन्द खिलौना लैहों।
जैहों लोटि अबै धरनी वै तेरी गोद न ऐहों।।
सुभग सेज सोभित कौसल्या, रुचिर ताप सिसु गोद लिए।
बार-बार विधुवदनि विलोकति, लोचन चारु चकोर किए।
कबहुँ पौढ़ि पय पान करावति, कबहूँ राखति लाइ हिये।
बाल केलि हलरावति, पुलकति प्रेम-पियूष पिये।
दादा ने चंदा दिखलाया
नेत्र नीरयुत दमक उठे
धुली हुई मुसकान देखकर
सबके चेहरे चमक उठे।
यह मेरी गोद की शोभा
सुख-सुहाग की है लाली
शाही शान भिखारिन की है
मनोकामना मतवाली है।
दोस्तो हमने इस आर्टिकल में Vatsalya Ras in Hindi के बारे में पढ़ा। हमे उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। आपको यहां Hindi Grammar के सभी टॉपिक उपलब्ध करवाए गए। जिनको पढ़कर आप हिंदी में अच्छी पकड़ बना सकते है।