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यमक अलंकार की परिभाषा, भेद एवं इसके उदाहरण

यमक अलंकार –
काव्य में जहां कोई शब्द या शब्दांश बार बार आए किंतु प्रत्येक बार अर्थ भिन्न हो वहां यमक अलंकार होता है।

उदाहरण:-

  1. कनक- कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय ,उपाय बोराय ,उखाय बोराय।
    यहां कनक- कनक के अर्थ भिन्न-भिन्न है।
    कनक- सोना
    कनक- धतूरा।
  2. तू मोहन के उरबसी ह्वै उर्वशी समान।
    उरबसी -हृदय में बसी
    उर्वशी- अप्सरा।
  3. बार जीते सर मैंन के ऐसे देखे मैंन
    हरिनी के नैनान ततें हरिनी के थे नैन।
    मैंन- कामदेव
    मैंन- मैं नहीं

    हरिनी- मादा हिरण
    हरिनी- हरि (कृष्ण) को प्रिय
  4. जे तीन बेर खाती थीं, ते वे तिन बेरे खाती हैं।
    तीन बेर-तीन बेर के फल
    तीन बेर-तीन बार (समय)
  5. मुरति मधुर मनोहर देखी।
    भयेठ विदेह विदेह विसेखी।
    यहां पर विदेह शब्द दो बार आया है। पहली बार इसका अर्थ है राजा जनक और दूसरी बार अर्थ है देह-रहित है।
  6. सारंग ले सारंग चली, सारंग पुगो आय।
    सारंग ले सारंग धर्यौ, सारंग सारंग मॉय।
    सारंग – 1. धड़ा, 2. सुन्दरी, 3. वर्षा, 4. वस्त्र, 5. धड़ा, 6. सुन्दरी, 7. सरोवर।

यमक अलंकार के भेद-

(i) अभंग
(ii) सभंग

(i) अभंग यमक:- अभंग यमक में पूरे शब्दों की आवृत्ति होती है अर्थात शब्दों को बिना थोड़ी ही आवृत्ति देखी जा सकती है।

(ii) सभंग अलंकार – सभंग यमक में कोई शब्द सार्थक और कोई शब्द निरर्थक हो सकता है किंतु स्वर व्यंजन की आवृत्ति सदा ही उसी क्रम में होती है।

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