समास ( Samas )
Samas in hindi
समास का शाब्दिक अर्थ है – सामान रूप से पास आना। दो या दो से अधिक शब्दों का परस्पर मेल ही समास कहलाता है।
समास की परिभाषा – जब दो सामान प्रकृति के शब्द मिलकर किसी तीसरे सार्थक शब्द का निर्माण करते हैं तो निर्माण की यह प्रक्रिया समासीकरण कहलाती है। जैसे – गंगाजल अर्थात गंगा का जल।
समास के उदाहरण | Samas ke Udaharan
गंगा का जल = गंगाजल
हाथ के लिए कड़ी = हथकड़ी
रसोई के लिए घर = रसोईघर
नील और कमल = नीलकमल
सामासिक पद या समस्त पद
समास प्रक्रिया से बनाने वाले पद को सामासिक पद कहते है। अथवा दो या दो से अधिक शब्दों का परस्पर मेल ही समास कहलाता है, उन शब्दों के परस्पर मेल से जो नया शब्द बनता है उसे सामासिक पद या सामासिक शब्द कहते है।
सामासिक पद के उदाहरण
► घनश्याम
► शिवभक्त
► चतुर्भुज
► रेलगाड़ी
► सिरदर्द
► चक्रपाणि
समास – विग्रह किसे कहते हैं | samas vigrah kise kahate hain
सामासिक पदों के शब्दों के ( मिले हुए शब्दों ) को अलग – अलग करने की प्रक्रिया को समास विग्रह कहलाती है।
समास विग्रह करते समय मूल पद का प्रयोग करना चाहिए।
मूल पद के किसी पर्यायवाची पद का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
समास – विग्रह के उदाहरण
► यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार।
► यथेच्छा = इच्छा के अनुसार।
► तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित।
► वनवास = वन में वास।
► देवालय = देवता के लिए आलय
► रसोईघर = रसोई के लिए घर
► गोशाला = गायों के लिए शाला
► रणभूमि = रण के लिए भूमि
समास के प्रकार | Samas ke Prakar –
समास के भेद | Samas ke Bhed
समास मुख्यत:छह प्रकार के होते है –
1. अव्ययी भाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. कर्मधारय समास
4. द्विगु समास
5. द्वंद्व समास
6. बहुब्रीहि समास
(कर्मधारय समास और द्विगु समास तत्पुरुष समास के ही भेद है )
1.अव्ययीभाव समास –
इस समास में पहला पद प्रधान होता है। इस समास में पहला पद की अव्यय शब्द होता है।
( अव्यय शब्द वह होता है जिसको किसी भी लिंग, वचन, विभक्ति या पुरुष में प्रयोग करने पर उसके रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता है )
जैसे –
आजीवन | जीवन रहने तक(जीवन भर) |
आमरण | मरण तक |
आकंठ | कंठ तक |
आजन्म | जन्म तक |
आजानुबाहु | बहु से जानु(घुटने ) तक |
आपादमस्तक | मस्तक से पाद (पैर) तक |
निडर | डर से रहित ( बिना डर के) |
निर्विवाद | विवाद से रहित |
निधड़क | धड़क से रहित |
निश्चिन्त | चिंता से रहित |
निर्विकार | विकार से रहित |
बेवजह | बिना वजह के |
बेदाग | बिना दाग के |
2. तत्पुरुष समास –
इस समास में उतर पद अर्थात द्वितीय पद अर्थ की दृष्टि से प्रधान होता। इस समास का पहला पद संज्ञा या विशेषण होता है। तत्पुरुष समास का लिंग – वचन अंतिम पद के अनुसार ही होता है
(कर्मधारय समास और द्विगु समास तत्पुरुष समास के ही भेद है )
जैसे-
पद | विग्रह |
हवन सामग्री | – हवन के लिए सामग्री |
राज कन्या | – राजा की कन्या |
सत्यपालन | – सत्य का पालन |
तत्पुरुष समास के छह: भेद होते है जो निम्न है –
(I) कर्म तत्पुरुष समास –
जिस तत्पुरुष समास में कर्मकारक चिह्न ‘ को ‘ का लोप हो जाता है उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे –
गगनचुम्बी | – गगन को चूमने वाला |
मनोहर | – मन को हरने वाला |
सुखप्राप्त | – सुख को प्राप्त |
दुःखातीत | – दुःख को अतीत |
गृहागत | – ग्रह को आगत |
मुँहतोड़ | – मुँह को तोड़ने वाला |
चितचोर | – चित को चोरने वाला |
जलपिपासू | – जल का पिपासु |
जातिगत | – जाति को गया हुआ |
कालातीत | – कल को अतीत करके |
पापहर | – पाप को हरने वाला |
(II) करण तत्पुरुष समास –
जिस तत्पुरुष समास में करण करक चिह्न `से / के द्वारा ‘ का लोप हो जाता है उसे करण तत्पुरुष समास कहते है।
जैसे –
मनमानी | – मन से मानी |
रोगग्रस्त | – रोग से ग्रस्त |
मनगढंत | – मन से गढ़ा हुआ |
नेत्रहीन | – नेत्रों से हीन |
धर्मयुक्त | – धर्म से युक्त |
मदमस्त | – मद से मस्त |
ईश्वरदत्त | – ईश्वर के द्वारा दिया हुआ |
हस्तलिखित | – हाथ के द्वारा लिखा हुआ |
विधि निर्मित | – विधि के द्वारा निर्मित |
तर्कसिद्ध | – तर्क के द्वारा सिद्ध |
(III) सम्प्र्दान तत्पुरुष समास –
जिस तत्पुरुष समास में सम्प्र्दान करक चिन्ह ‘ के लिए ‘ का लोप हो जाता है उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे –
देश भक्ति | – देश के लिए भक्ति |
भूतबलि | – भूतो के लिए बलि |
स्नानघर | – स्नान के लिए घर |
रसोईघर | – रसोई के लिए घर |
मेजपोश | – मेज के लिए पॉश |
छात्रावास | – छात्रों के लिए आवास |
आरामकुर्सी | – आराम के लिए कुर्सी |
देवालय | – देवो के लिए आलय |
महंगाई भत्ता | – महंगाई के लिए भत्ता |
भंडार गृह | – भंडार के लिए गृह |
चिकित्सालय | – चिकित्सा के लिए आलय |
न्यायालाय | – न्याय के लिए आलय |
(IV) अपादान तत्पुरुष समास –
वह तत्पुरुष समास जिसमे अपादान कारक चिन्ह ‘से (अलग होने के अर्थ में )’ का लोप हो जाता है उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते है।
( नोट – हीन ,मुक्त शब्द अलग होने के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं )
जैसे –
धनहीन | – धन से हीन |
आवरणहीन | – आवरण से हीन |
नेत्रहीन | – नेत्रों से हीन |
भाषाहीन | – भाषा से हीन |
कर्तव्य विमुख | – कर्तव्य से विमुख |
जन्मांध | – जन्म से अँधा |
धर्मभ्रष्ट | – धर्म से भ्रष्ट |
ह्रदयहीन | – ह्रदय से हीन |
फल रहित | – फल से रहित |
वीर विहीन | – वीरो से विहीन |
गुणातीत | – गुणों से अतीत |
जात बाहर | – जाति से बाहर |
पद दलित | – पद से दलित |
(V) सम्बन्ध तत्पुरुष समास –
वह तत्पुरुष समास जिसमें सम्बन्ध कारक चिन्ह का, की , के, का लोप हो जाता है उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे –
राजपुत्र | – राजा का पुत्र |
पराधीन | – पर के अधीन |
सिरदर्द | – सर का दर्द |
सत्रावसान | – सत्र का अवसान |
सभापति | – सभा का पति |
धनपति | – धन का पति |
उल्कापात | – उल्का का पात (गिरना ) |
मनाली | – मनु का घर |
तमपुंज | – तम का पुंज (समूह ) |
प्रेमोपकार | – प्रेम का उपकार |
सूर्योदय | – सूर्य का उदय |
वाग्दान | – वाणी का दान |
चरित्रहनन | – चरित्र का हनन |
(VI) अधिकरण तत्पुरुष समास –
जिस तत्पुरुष समास में अधिकरण कारक चिन्ह में , पर का लोप हो जाता है उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते है।
जैसे –
धर्मरत | – धर्म में रत |
जलमग्न | – जल में मग्न |
मुनिश्रेष्ठ | – मुनियो में श्रेष्ठ |
दानवीर | – दान में वीर |
आत्मनिर्भर | – आत्म पर निर्भर |
कविराज | – कवियों में राजा |
कविवर | – कवियों में वर |
आपबीती | – अपने पर बीती हुई |
हरफनमौला | – हर फन में मौला |
देशवासी | – देश में वास करने वाला |
पुरुषसिंह | – पुरुषों में सिंह |
कानाफूसी | – कान में फुसफुसाहट |
नोट – तत्पुरुष समास के उपयुर्क्त भेदों के अलावा अन्य सहायक भेद भी होते है जिनमे चार भेदों को प्रमुख माना जाता है –
I. अलुक तत्पुरुष समास
II. नञ तत्पुरुष समास
III. उपपद तत्पुरुष समास
IV. लुप्तपद तत्पुरुष समास
(I) अलुक तत्पुरुष –
इस समास में हिंदी के विभक्ति चिन्हो का लोप हो जाता है किन्तु संस्कृत के विभक्ति चिन्ह अपरिवर्तित रहते है। अर्थात इस में बाह्य दृष्टी से तो कारकीय परसर्गो का लोप हो जाता है, किन्तु आंतरिक दृष्टि से नहीं।
जैसे –
युदिष्ठिर | – युद्ध में स्थिर रहने वाला |
सरसिज | – सर (तालाब ) में सृजित होने वाला |
मनसिज | – मन में सृजित होने वाला ( कामदेव) |
शुभंकर | – शुभ को करने वाला |
मृत्युंजय | – मृत्यु को जय करने वाला |
अंतेवासी | – समीप में वास करने वाला |
खेचर | – आकाश में विचरण करने वाला |
धुरंधर | – धुरी को धारण करने वाला |
कुछ अन्य उदहारण भी है जिनमे संस्कृत के विभक्ति चिन्हो का प्रयोग नहीं हुआ है –
जैसे –
► चूहेदानी – चूहे की दानी
► बच्चेदानी – बच्चे की दानी
► थानेदार – थाने का दार
► ऊंटपटांग – ऊँट पर टांग
(II) नञ तत्पुरुष –
जिस समास के पूर्व पद में निषेधसूचक अथवा नकारात्मक शब्द जैसे अ ,न, ना, गैर आदि लगे हो , उसे नञ तत्पुरुष समास कहते है।
जैसे –
अजन्मा | – न जन्म लेने वाला |
अटल | – न टलने वाला |
अडिग | – न टिकने वाला |
अशोच्य | – नहीं है शोचनीय जो |
अनासक्त | – आसक्ति के रहित |
नापसंद | – नहीं है पसंद जो |
नीरस | – बिना रस के |
नामुराद | – नहीं है मुराद जो |
(III) उपपद तत्पुरुष –
तत्पुरुष समास में द्वितीय पद प्रधान होता है वैसा इस समास में नहीं होता। इस समास में द्वितीय पद पूर्ण रूप से प्रथम पद पर आश्रित होता है।
जैसे-
जलचर | – जल में विचरण करने वाला |
नभचर | – नभ में विचरण करने वाला |
थलचर | – थल में विचरण करने वाला |
चर्मकार | – चर्म का कार्य करने वाला |
गीतकार | – गीत का कार्य करने वाला |
जलधि | – जल को धारण करने वाला |
वारिधि | – वारि को धारण करने वाला |
(IV) लुप्तपद तत्पुरुष –
इस समास में दोनों पदों के मध्य प्रयुक्त होने वाले कारकीय उपसर्गो के साथ-साथ समस्त योजक शब्दों का लोप हो जाता है।
जैसे –
रसगुल्ला | – रस में डूबा हुआ गुल्ला |
रसमलाई | – रस में डूबी हुई मलाई |
बैलगाड़ी | – बैलो से चलने वाली गाड़ी |
जेबघड़ी | – जेब में रहने वाली घड़ी |
जलपोत | – जल में चलने वाला पोत |
स्वर्णहार | – स्वर्ण से बना हुआ हार |
पर्णशाला | – पर्ण से बनी हुई शाला |
3. कर्मधारय समास –
इस समास को समानाधिकरण तत्पुरुष समास भी कहा जाता है।
इस समास का उतर पद प्रधान होता है ,किन्तु प्रथम पद द्वितीय पद की विशेषता बतलाने वाला होता है अर्थात प्रथम पद ‘विशेषण या उपमान ‘ तथा उतर पद ‘विशेष्य या उपमेय ‘ के रूप में प्रयुक्त होता है।
उपमेय – वह वस्तु या व्यक्ति जिसको उपमा दी जा रही है।
उपमान – वह वस्तु या व्यक्ति जिसकी उपमा दी जा रही है।
► जैसे – पीताम्बर ( पीत है जो अम्बर )
► पीत – उपमान
► अम्बर – उपमेय
कर्मधारय समास को दो भागो में बाँटा गया है –
(I) विशेषता वाचक कर्मधारय समास
(II) उपमान वाचक कर्मधारय समास
(I) विशेषता वाचक कर्मधारय समास – यह विशेषण विशेष्य भाव को सूचित करता है।
इसके कुछ उपभेद निम्न है –
i. विशेषण पूर्व पद – इसमें प्रथम पद विशेषण होता है।
जैसे –
► महाजन – महान है जो जन
► परमानन्द – परम है जो आनंद
► सद्गुण – सत है जो गुण
► नीलकमल – नीला है जो कमल
► बदबू – बद( बुरा ) है जो बू
► शुक्लपक्ष – शुक्ल है जो पक्ष
► अरुणाभ – अरुण है जो आभा
ii. विशेषणोतर पद – इसमें दूसरा पद विशेषण होता है।
जैसे –
► जन्मान्तर – जन्म है अन्य जो
► पुरुषोत्तम – पुरुषों में है उत्तम जो
► प्रभुदयाल – प्रभु है दयालु जो
► मुनिवर – मुनियो में है श्रेष्ठ जो
► रामदीन – राम है दीन जो / दीनो का राजा है जो
► शिवदयाल – शिव है दयालु जो
iii. विशेषणोभय पद – इसमें दोनों ही पद विशेषण होते है।
जैसे –
► ऊँच नीच – ऊँचा है जो नीचा है
► मोटा – ताज़ा – जो मोटा है ताज़ा है
► बड़ा – छोटा – जो बड़ा है जो छोटा है
► पीला जर्द – पीला है जो जर्द (पीला ) है
► भला बुरा – जो भला है जो बुरा है
► श्यामसुन्दर – जो श्याम है जो सुंदर है
► उन्नातावनत – जो उन्नत है जो अवनत है .
iv. विशेष्य पूर्व पद –
जैसे –
►धर्मबुद्धि – धर्म है यह बुद्धि
► विंध्य पर्वत – विंध्य नामक पर्वत
v. अव्यय पूर्व पद –
जैसे –
► अधमरा – आधा है जो मरा हुआ
► दुकाल – बुरा है जो काल
► सुयोग – अच्छा है जो योग
vi. संख्या पूर्व पद – इसमें पहला पद संख्या वाचक होता है।
जैसे –
► नवरात्र – नौ रात्रियो का है जो समूह
► त्रिकाल – तीन कालो का है जो समूह
vii. मध्यम पद लोपी – पूर्वपद तथा उत्तरपद में सम्बन्ध बताने वाले पद का लोप हो जाता है।
जैसे –
► दही बड़ा – दही में डूबा हुआ बड़ा
► वायुयान – वायु में चलने वाला यान
► जलपोत – जल में चलने वाला पोत
► पनडुब्बी – पानी में डूब कर चलने वाला पोत
► जलकुम्भी – जल में उत्त्पन होने वाली कुम्भी
► शकरपारा – शक्कर से बना पारा
► पर्णशाला – पर्ण से निर्मित शाला
► बैलगाड़ी – बैल से चलने वाली गाड़ी
(II) उपमानवाचक कर्मधारय समास – इस समास में एक पद उपमान तथा दूसरा पद उपमेय होता है।
जैसे –
► घनश्याम – घन है श्याम जो
► चन्द्रमुख – चंद्र के समान है मुख जो
► लौहपुरूष – लोहे के समान है पुरुष जो
► चरणकमल – कमल रूपी चरण
► मुखकमल – कमल रूपी मुख
► स्त्रीरत्न – स्त्री रूपी रतन
► मुखचन्द्र – चन्द्रमा रूपी मुख
► भवसागर – सागर रूपी संसार
► विरह सागर – सागर रूपी विरह
► कीर्तिलता – लता रूपी कीर्ति
4. द्विगु समास –
जिस समास में उतर पद या द्वितीय पद प्रधान होता है तथा प्रथम पद संख्यावाची अर्थात संख्या का बोध करवाना वाला होता है वह द्विगु समास होता है।
– अर्थ की दॄष्टि से द्विगु समास में किसी समूह या समाहार का बोध होता है अर्थात यह समास समूहवाची या समाहारवाची समास होता है।
जैसे –
नवग्रह | – नौ ग्रहो का समूह |
त्रिरात्र | – तीन रातों का समूह |
अठन्नी | – आठ आनों का समूह |
दशाब्दी | – दस वर्षो का समूह |
चतुष्पदी | – चार पदों का समूह |
त्रिलोकी | – तीन लोको का समूह |
त्रिगुण | – तीन गुणों का समूह |
सतमासा | – सत महीनो का समूह |
अठमासा | – आठ महीनो का समूह |
त्रिनेत्र | – तीन नेत्रों का समूह |
चतुर्भुज | – चार भुजाओ का समूह |
त्रिमूर्ति | – तीन मूर्तियों का समूह |
कर्मधारय समास और द्विगु समास में अंतर –
द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है पर वो संख्यावाचक नहीं होता है।
जैसे –
नवरात्र – नौ रातों का समूह (द्विगु समास )
त्रिकाल – तीन कालो का समूह
पुरुषोत्तम – पुरुषों में है जो उत्तम ( कर्मधारय समास )
मुनिवर – मुनियो में है श्रेष्ठ जो
5. द्वंद्व समास –
जिस समास में दोनों पद प्रधान हो तथा विग्रह करने पर ‘और ‘ ,’अथवा ‘, ‘या ‘,’एवं ‘ लगता हो वह द्वंद्व समास होता है।
नोट – द्वंद्व समास में प्राय: दोनों पदों के बीच योजक चिन्ह (-) का प्रयोग होता है।
सीधा-सादा | – सीधा और सादा |
सीता-राम | – सीता और राम |
तिल-चावल | – तिल और चावल |
आग- पानी | – आग और पानी |
दो-चार | – दो और चार |
लाभ-हानि | – लाभ और हानि |
धुप-छाँव | – धुप और छाँव |
नर-नारी | – नर और नारी |
मोल-तोल | – मोल और तोल |
जीव-जंतु | – जीव और जंतु |
राम-कृष्ण | – राम और कृष्ण |
मोटा -ताजा | – मोटा और ताजा |
6. बहुब्रीहि समास –
जिस समास में कोई भी पद ( पूर्वपद या उतर पद ) प्रधान नही होता है ,बल्कि दोनों ही पद किसी तीसरे या अन्य अर्थ को प्रकट करते है ,उसे बहुब्रीहि समास कहते है ।
बहुब्रीहि समास भी द्विगु समास तथा कर्मधारय समास की तरह विशेषण और संज्ञा से बनता है।
पहचान- इस समास का विग्रह करने पर वाला, जिसका, जिसकी, शब्दों का प्रयोग होता है।
पीताम्बर | – पीले है वस्त्र जिसके | श्री कृष्ण |
घनश्याम | – घन( बादलों) के समान है जो | श्री कृष्ण |
नन्दलाल | – नन्द का है जो लाल (पुत्र ) | श्री कृष्ण |
एकदन्त | – एक दन्त है जिसके | गणेश जी |
नाकपति | – नाक( स्वर्ग ) का है पति जो | इंद्र |
त्रिलोचन | – तीन है लोचन जिसके | शिव |
पशुपति | – पशुओ का है पति जो | शिव |
लक्ष्मीपति | – लक्ष्मी का है जो पति | विष्णु |
रतिकांत | – वह जो रति का कांत है | कामदेव |
वीणापाणि | – वीणा है हाथ में जिसके | सरस्वती |
कपीश | – कापियों ( वानर ) का है जो ईश | हनुमान |
सीतापति | – सीता का है पति जो | राम |
द्विगु समास तथा बहुब्रीहि समास में अंतर –
इन दोनों समासों में अंतर समझने के लिए इनके विग्रह को देखना होगा। द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक होता है जबकि बहुब्रीहि समास में समस्त पद संज्ञा ,विशेषण का कार्य करते है।
जैसे – दशानन – दस है आनन् जिसके (बहुब्रीहि समास)
दशानन – दस आननो का समूह ( द्विगु समास )
चतुर्भुज – चार है भुजा जिसके ( बहुब्रीहि समास )
चतुर्भुज – चार भुजाओ का समूह ( द्विगु समास )
कर्मधारय समास तथा बहुब्रीहि समास में अंतर
कर्मधारय समास में कोई एक पद विशेषण या उपमान होता है तो दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है।
जैसे – नीलकमल – नीला है जो कमल , इसमें नीला विशेषण तो कमल विशेष्य है।
चरणकमल – कमल के समान चरण
बहुब्रीहि समास में समस्त पद संज्ञा , विशेषण का कार्य करते है
जैसे – चक्रधर – चक्र को धारण करने वाला , कृष्ण
( यह पर चक्रधर श्री कृष्ण की विशेषता बता रहा है। )
दोस्तो हमने इस आर्टिकल में Samas in Hindi के साथ – साथ Samas kise kahate hain, Samas ke bhed के बारे में पढ़ा। हमे उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। आपको यहां Hindi Grammar के सभी टॉपिक उपलब्ध करवाए गए। जिनको पढ़कर आप हिंदी में अच्छी पकड़ बना सकते है।